हिंदी गध एक ऐसी विधा है जिसमे लेखन कार्य इस डिजिटल युग में बहुत कम हो रहा है । यदि हो भी रहा है तो हिंदी में अंग्रेजी कस शब्दों का अनुवाद सबका अपना अलग होता है ।
कोई किसी शब्द का अनुवाद कुछ करता है तो कोई उसी शव्द का अनुवाद अलग करता है। लोग इतना अलग अनुवाद करते हैं कि पढ़ने वाले को संशय हो जाता है कि कौंन सही है और कौन गलत। वह किताब में कुछ और हिंदी पढ़कर गया तो परीक्षा में अनुवादक ने अंग्रेजी के शब्दों का कुछ अलग ही अनुवाद करकेरालह होता हैं। यह अधिकांशतया सिविल सेवा परीक्षा या केंद्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली परीक्षा में देखने को मिलता है । इसमे निश्चित रूप में अभ्यर्थियों का नुकसान होता है। शायद यही बजह है कि हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यथियों की संख्या में कमी आती ज रही हैं। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ मूल्यांकन में भेदभाव होता है। खैर भेदभाव वली बात तो मैं नही मानता लेकिन मूल्यनकन मेन कमी बढ़ी की मुख्य बजह हो सकता है अंग्रेजी के शब्दों का त्रुटिपूर्ण हिंदी अनुवाद ही हो।बहरहाल बजह जो भी हो आयोग की इसमे बदनामी है। ऐसा नही है कि हिंदी में अंग्रेजी शब्दों का स्टैण्डर्ड अनुवाद तय करने के लिए कोई संस्था न हो। संस्था के होते हुए भी अनुवाद की विसंगति को दूर नकर पाना आलस्य नही कहा जाय तो क्या कहा जाय।
मैं अपील करता हूँ उन सब भी बहनो से जो इस लेख को पढ़ रहे हैं । कि वे अनुवाद के मानकीकरण की जो संस्था है उसमें R T I डालकर यह पता लगाएं की इस संस्था के द्वारा मानकीकृत किये गए अनुवाद का प्रयोग परीक्षा आयोग क्यों नही करता है।
क्यों हर बार आयोग अपनी मनमानी करके उन्ही शब्दो के अजीबो गरीब अनुवाद करके प्रश्न पत्र बनाता रहता हैं।आखिर इस मनमानी के पीछे आयोग का उद्देश्य क्या है कहीं आयोग हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को हतोत्साहित तो नही करना चाहता हैं । हिंदी अभ्यर्थियों को इसी वजह से अंग्रेजी भाषा में भी प्रश्न पत्र को पढ़कर अपना दोगुना समय लगाना पड़ता हैं जिससे कि वे प्रश्न को सही तरह से समझ सकें। फिर ऊपर से यह नोट की अंग्रेजी वाले प्रश्न को सही मन जाएगा । मतलब आयोग यह मानता है कि उनसे अनुवाद में गड़बड़ हो सकती है। यदि आप यह मानते हो तो आप स्टैण्डर्ड शव्दों का प्रयोग क्यों नही करते हो ।
कोई किसी शब्द का अनुवाद कुछ करता है तो कोई उसी शव्द का अनुवाद अलग करता है। लोग इतना अलग अनुवाद करते हैं कि पढ़ने वाले को संशय हो जाता है कि कौंन सही है और कौन गलत। वह किताब में कुछ और हिंदी पढ़कर गया तो परीक्षा में अनुवादक ने अंग्रेजी के शब्दों का कुछ अलग ही अनुवाद करकेरालह होता हैं। यह अधिकांशतया सिविल सेवा परीक्षा या केंद्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली परीक्षा में देखने को मिलता है । इसमे निश्चित रूप में अभ्यर्थियों का नुकसान होता है। शायद यही बजह है कि हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यथियों की संख्या में कमी आती ज रही हैं। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ मूल्यांकन में भेदभाव होता है। खैर भेदभाव वली बात तो मैं नही मानता लेकिन मूल्यनकन मेन कमी बढ़ी की मुख्य बजह हो सकता है अंग्रेजी के शब्दों का त्रुटिपूर्ण हिंदी अनुवाद ही हो।बहरहाल बजह जो भी हो आयोग की इसमे बदनामी है। ऐसा नही है कि हिंदी में अंग्रेजी शब्दों का स्टैण्डर्ड अनुवाद तय करने के लिए कोई संस्था न हो। संस्था के होते हुए भी अनुवाद की विसंगति को दूर नकर पाना आलस्य नही कहा जाय तो क्या कहा जाय।
मैं अपील करता हूँ उन सब भी बहनो से जो इस लेख को पढ़ रहे हैं । कि वे अनुवाद के मानकीकरण की जो संस्था है उसमें R T I डालकर यह पता लगाएं की इस संस्था के द्वारा मानकीकृत किये गए अनुवाद का प्रयोग परीक्षा आयोग क्यों नही करता है।
क्यों हर बार आयोग अपनी मनमानी करके उन्ही शब्दो के अजीबो गरीब अनुवाद करके प्रश्न पत्र बनाता रहता हैं।आखिर इस मनमानी के पीछे आयोग का उद्देश्य क्या है कहीं आयोग हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को हतोत्साहित तो नही करना चाहता हैं । हिंदी अभ्यर्थियों को इसी वजह से अंग्रेजी भाषा में भी प्रश्न पत्र को पढ़कर अपना दोगुना समय लगाना पड़ता हैं जिससे कि वे प्रश्न को सही तरह से समझ सकें। फिर ऊपर से यह नोट की अंग्रेजी वाले प्रश्न को सही मन जाएगा । मतलब आयोग यह मानता है कि उनसे अनुवाद में गड़बड़ हो सकती है। यदि आप यह मानते हो तो आप स्टैण्डर्ड शव्दों का प्रयोग क्यों नही करते हो ।