आत्मनिर्भर भारत का दृश्य 2
आत्मनिर्भर कथा 2
भारत में इन दिनों आत्मनिर्भरता कीबात चल रही है। सब लोग अपने अपने तरीके से आत्मनिर्भर बनने की भरशक कोशिश कर रहे हैं। हमने अपनी पिछली कहानी में आत्मनिर्भरता की कोशिश करती एक संभ्रांत परिवार की बहू के सामने आने वाली समस्याओं पर बात की थी।
इसी कड़ी में आज हम लेकर आय हैं एक और रोचक अनुभव जो आपको हमारे समाज की सच्चाइयों से रूबरू कराएगा।
माँ बाप , कहते हैं माँ बाप का सबकुछ अपने बच्चों के लिए ही होता है। मतलब माँ बाप ने जो कुछ धन घर जोड़ा वो अपनी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए ही जोड़ा हैं। तो माँ बाप से प्राप्त धन के लिए संतान को भी माँ बाप का कृतज्ञ होना चाहिए और जीवन पर्यंत उनकी सेवा कर चाहिए । उनके पास रहकर उनकी सेवा के साथ साथ उनसे जीवन के आदर्श भी सीखने चाहिए जिससे जीवन को सार्थक बनाया सके।
यह बात से सभी लोग अपने आप को जोड़ेंगे और सभी इसको सही कहेंगे।
परंतु आत्मनिर्भर भारत का दृश्य दूसरा ही है। अब पिता ने जो कमाया वो पिता का आपने जो कमाया बस वो आपका। अगर आपको आत्मनिर्भर कहलाना है तो आपने पैसे कमाकर अपनी जरूरतें पूरी कर सको तो आत्मनिर्भर। और यदि घर के काम करते हुए उससे होने वाली इनकम से आप अपने खर्च करते हो तो पिता की संपत्ति पर पालने वाले नकारा। आप बूढ़े माँ बाप को घर में छोड़ो उनके हाल पर और बाहर खुद का कमाकर खाओगे तब ही आत्मनिर्भरभर कहलाओगे।
इधर माँ बाप घर में सहारे को तरस रहे हैं। उधर व्यक्ति बद से बदतर खाना खाकर जीवन गुजार रहा है । रोज माँ के हाथ के खाने को तरस रहा है। पर भाईसाहब वो आधुनिक समाज में आत्मनिर्भर हैं। बच्चा भी और माँ बाप भी। क्योंकि बच्चा पैसे कमाकर होटल में खाता है तो देश को भी आत्मनिर्भर कर रहा है।(जीएसटी से)। और माँ बाप कोई सहारा न होंने के कारण ऑनलाइन सामान मगवाकर देश को आत्मनिर्भर कर रहे हैं।
एक बात अलग है कि दोनों हैं परेशान। पर दोनों लोग खुद को और देश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रहे हैं।
आप समझ गए हों तो कॉमेंट करके बताइयेगा। की आपको क्या सही लगता हैं। आत्मनिर्भरता पारस्परिक सहयोग पर ठेस पहुचती है और पूंजीवाद को बढ़ावा देती हैं या नही।