Atmanirbhar bharat ka sach

 भारत देश अनेक विविधताओं का देश हैं। कहने को तो यहां संविधान सर्वोपरि हैं।जो समस्त देश पर एकल रूप से लागू होता है। मायने सबके लिए कानून समान है । पर देखा जाय तो यहां देश का कानून अलग है राज्य का कुछ अलग और मंडल का कुछ अलग जिले का कुछ और तहसील का कुछ और तालुका का कुछ और गांव का कुछ और और अंत में परिवार तो परिवार में कुछ और। ऐसा इसीलिए नही की लोग संविधान की अवहेलना ककरते हैं नही आया बिल्कुल नही है।  और ऐसा भी नही है कि परिवार का अलिखित संविधान देश के संविधान का विरोधाभासी हो। होता तो सविधान के अनुकूल ही है पर कुछ बदले स्वरूप में होता है। कभी कभी ऐसा होता है। कि परिवार या समाज में जो परंपरा चली आ रही है । उसको संविधान में हुए नवीनतम बदलाव के साथ अनुकूलता लाने में समय लगता है।

मसलन सरकार का बेटा बेटी एक समान वाला नारा हो या सबसे नवीनतम आत्मनिर्भर भारत वाला नारा। सरकार ने तो अपनी नीति और नियमों में अनुकूल परिवर्तन कर लिए पर समाज के व्यवहार में अनुकूलता आने में अभी समय लगेगा।

और हो सकता है कि  कोई परिवार इससे छूट भी जाय लेकिन परिवार के लोग बिना किसी परेशानी के पुरानी व्यवस्थाओ में ही प्रसन्न रहें यह भी संभव है। वैसे तो कानून के दायरे में आने वाली आखिरी इकाई व्यक्ति ही है। तो ऐसे में  यदि परिवार का कोई व्यक्ति अपने परिवार की व्यवस्थाओं से नाखुश है। तो वह अपने कानूनी अधिकार का प्रयोग कर सकता है। परंतु परिवार के खिलाफ कानून का सहारा भारत में बिरले ही लेते हैं।

      अभी हाल ही में देश के प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया गया। उसके पहले बेटा बेटी एक समान की मुहिम चल ही रही थी। मेरे नजदीक में रहने वाले एक परिवार की बहू ने शायद प्रधानमंत्री की बात को गंभीरता से लिया और निकल पड़ी आत्मनिर्भर बनने। आ गया परिवार का संविधान आढ़े।परिवार में आजतक किसी बहु ने घर के बाहर काम नही किया था चाहे वो पढ़ी लिखी हो या अनपढ़। चूंकि व्यवस्था में परिवर्तन हो रहा था तो परिवार वालो कस विरोध लाजमी था। परिवार वालो के विरोध के बाबजूद बहु ने पास के कस्बे के एक विद्यालय में अध्यापन जारी रखा। कुछ समय बाद घर वालो ने कड़ा विरोध करते हुए अपने कानून के मुताविक कुछ प्रतिवंध लगा दिए । बहु ने फिर भी अध्यापन जारी रखा । 

परिवार ने पूरे समाज में अपनी बदनामी होते देख बहु बेटे से बोलना छोड़ दिया। बहु बेटे ने इतने पर भी अपना घर नही छोड़ा रहे बूढ़े माँ बाप के साथ ही उसी छत के नीचे बस अपना खाना अलग बनाने लगे। अब बहु के घर में नन्हा मेहमान आने को है। परिवार का सहयोग अब भी शून्य है। यह आत्मनिर्भर भारत का सच है। नियमों में बदलाव तो दिनों या महीनों में हो सकते हैं । परंतु समाज में नियमानुसार बदलाव लाने में समय लगता है।

और ऐसे में नियमों के अनुरूप जो सबसे पहले कदम उठाता है। उसको समाज की अवहेलना का शूल झेलना ही होता है।

 


बाकी की कहानी बाद में......



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