कविता तिवारी जी अपनी देेेशभक्ति कविताओ के लिए भारत भर में प्रसििद्ध हैैं ।
Jhansi ki Rani Poem
निर्जला शुष्क सी धरती पर मानवता जब कुम्भ्लाती है
जब घटा टोप अंधियारे में स्वातंत्र घडी अकुलाती है
जब नागफनी को पारिजात के सदृश्य बताया जाता है
जब मानव को दानव होने का बोध कराया जाता है
जब सिंघनाद की जगह श्रीगालो की आवाजें आती हैं
जब कौओ के आदेशों पर कोयलें बाध्य हो गाती हैं
जब अनाचार की पर छाई सुविचार घटाने लगती है
जब कायरता बन कर मिसाल मन को तद्पाने लगती है
तब धर्मयुद्ध के लिए हमेशा शस्त्र उठाना पड़ता है
देवी हो अथवा देवरूप धरती पर आना पड़ता है
हरकोना भरा वीरता से इस भारत की अग्नाई का
वरदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का
गोरो की सत्ता के आगे थे जब वीर जनों के झुके भाल
झांसी पर संकट छाया तो जलुथी शौर्य की महा ज्वाल
अवला कहते थे लोग जिसे जब पहली बार सबल देखि
भारत क्या पूरी दुनिया ने नारी की शक्ति प्रवल देखि
लेकर कृपाण संकल्प किया निज धरा नही बटने दूँगी
मेरा सर चाहें कट जाय अस्तित्व नही घटने दूंगी
पति परम धाम को चले गये मैं हिम्मत कैसे हारूंगी
मर जाउंगी सामराग्न में या दो गोरो को मारूंगी
त्यागे श्रींगार अवस्था के रण के आभुष्ण धार लिए
जिन हाथों में कंगन खनके उन हाथों में हथियार लिए
शिशु प्रष्ठ भाग पर बाँध लिया लगाम साधी दांतों में
फिर होकर के घोतक सवार ले लिए खडग निज हाथों में
जब तक महिशेष शीर्ष पर है है उदहारण तरुनाई का
बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का.
गोरों की सेना पर रानी दावानल बनकर छाई थी
रण चंडी ने खप्पर भरकर तब अपनी प्यास बुझाई थी
उड़ चला पवन के वेग पवन बादल बादल बन बरस गया
चपला सम तलवारें चमकी दुश्मन पानी को तरस गया
रण बीच अकेली डटी रही साहस के तब पौवारे थे
दुश्मन से बाजी जीत गये पर अपनों से हम हारे थे
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