रक्षाबंधन पर निबंध - Raksha Bandhan par Nibandh

 प्रस्तावना

हमारी भारतीय संस्कृति  में हमेशा रिश्तों को ज्यादा अहमियत दी जाती है। सदियों से भारतीय संस्कृति में त्यौहार का काफी महत्व रहा है। ज्यादातर हमारे त्यौहार किसी ना किसी रिश्ते से जुड़े हुए है। ऐसा की एक अलग और अनोखा पर्व है रक्षाबंधन। रक्षाबंधन भाई और बहन का पर्व है। भाई और बहन का रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता है। यह त्यौहार भाई बहन की भावनाओं से साथ जुड़ा हुआ है और उनके बीच के अटूट स्नेह को दर्शाता है। हिन्दू और जैन धर्म में इस त्यौहार का काफी महत्व रहा है। वैसे तो यह हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख त्यौहार रहा है लेकिन भारत में सभी धर्म के लोग इस त्यौहार को बड़ी धामधूम के साथ मनाते है।

कब और कहां मनाया जाता है रक्षाबंधन पर्व

यह पवित्र पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे 'श्रावणी' या 'सलूनो' भी कहते है क्योंकि यह पर्व सावन महीने में पड़ता है। भारत के साथ साथ यह त्यौहार नेपाल और मलेशिया में भी बड़ी धामधूम के साथ मनाया जाता है। हालाँकि उन लोगों के रीत रिवाज़ अलग होते है। इस बर्ष यह पर्व 22 अगस्त 2021 , दिन रविवार को मनाया जायेगा । 

रक्षाबंधन का महत्व 

'रक्षा' और 'बंधन' ये दो शब्दों में ही रक्षाबंधन का अर्थ छुपा है। रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है ' रक्षा के लिए बांधना'। सभी त्यौहार में रक्षाबंधन की एक ऐसा त्यौहार है जिसका  एक सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है। कहा जाता है कि यह एक प्राचीन पर्व है और श्रावण मास में आने के कारण इस पर्व का अधिक महत्व है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी मानक एक धागा बांधती है। बहन द्वारा भाई को बांधने वाला धागा एक आम धागा नही है बल्कि एक रक्षा धागा होता है, जो भाई की सुरक्षा करता है साथ ही बहन भाई से अपनी(बहन) सुरक्षा करने का वचन लेती है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को समीप लाता है और मजबूत बनाता है।

अनेक जगह पर इस दिन जलदेवता की आराधना भी की जाती है। कहा जाता है की इस दिन पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने से कष्ट दूर होते है। पंडित लोग भी इस दिन अपना पुराना जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ धारण करते है।

रक्षाबंधन भाई - बहन का रिश्ते का त्यौहार

भाई और बहन का रिश्ता दुनिया में सबसे अलग है। दोनों के बीच एक अनोखा और विश्वसनीय बंधन होता है। दोनों चाहे आपस में कितना भी लड़े फिर भी दोनों के हृदय में एक दूसरे के प्रति प्रेम, चिंता और विश्वास बना रहता है। आवश्यकता पड़ने पर हमेशा दोनों एक दूसरे के समर्थन में खड़े होते हैं। सच में इस रिश्ते की तुलना दुनिया के किसी भी रिश्तों के साथ नही की जाती। बहन भाई से चाहे कितनी भी दूर रहे भाई के दिल में उनके लिए प्यार जरूर होता है।

रक्षाबंधन की पूर्व तैयारियां



रक्षाबंधन के अवसर पर सभी क्षेत्रो में छुट्टियाँ होती है। रक्षाबंधन के थोड़े दिन पहले से ही बाजार की रौनक बढ़ जाती है। लोगों की चहल पहल बाजार में बढ़ जाती है। बाजार में तरह तरह की राखियां देखने को मिलती है। पूरा बाजार रंग बिरंगी राखियां से भरा भरा लगता है। सीधा सादा रक्षा का धागा आज तरह तरह डिज़ाइन में बदल गया है। आजकल बाजार में सोने, चांदी और हीरे की राखी भी मिलती है। लोग राखियां और कपड़े खरीदते नजर आते है। साथ साथ मिठाई और चॉकलेट की दुकानों पर भी भीड़ दिखाई पड़ती है। हर तरफ खुशी का माहौल छा जाता है। रक्षाबंधन के अलगे दिन शैक्षणिक संस्थानो और कई संगठन के द्वारा भी यह त्यौहार मनाया जाता है। कई जगहों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

रक्षाबंधन की विधि

इस दिन का सभी बहनें बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नये वस्त्र पहनती है और पूजा की थाली सजाती है। पूजा की थाली  में रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र, मिठाई और घी का एक दिया रखती है। सबसे पहले यह पूजा थाली भगवान को अर्पित होती है बाद में भाई को तिलक लगाकर दाईं कलाई पर राखी बांधी जाती है। उसके बाद आरती उतार कर भाई को मिठाई खिलाई जाती है। बाद में बहन भाई की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करती है। इसके बदले में भाई भी अपनी बहन को आशीर्वाद देता है और सारी उम्र उनकी रक्षा करने का वचन देता है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति भेंट प्रदान करता है। इस दिन घरों में पकवान और तरह तरह की मिठाइयां बनाई जाती है।शादीशुदा बहनें भी इस दिन अपने मइके आती है और पूरी विधि की साथ भाई की कलाई पर राखी बांधती है। पुरे भारत में यह त्यौहार हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। अलग अलग धर्मो और जगहों पर अलग अलग विधियों से यह पर्व मनाते है।

रक्षाबंधन से जुड़ी प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं

रक्षाबंधन के पीछे कई पौराणिक कथाएं जुडी हुई है। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत भगवान इंद्र के समय में हुई थी। जब देवता और दानव के बीच में युध्ध हुआ और दानव की जीत निश्चित होने लगी तब भगवान इंद्र घबरा गए और ब्रह्मा के पास पहुंच गए। तभी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने अपने पति की सारी बात सुन ली और पति की रक्षा के लिए उन्होंने इंद्र की कलाई पर पवित्र मंत्रो की शक्तिवाला एक रक्षा धागा बांधा। कहा जाता है इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। कलाई पर रक्षा धागा बांधने के बाद इंद्र ने दानवों को युद्ध में हरा दिया और अपन स्थान गौरव के साथ वापस लिया।

एक और  पौराणिक कहानी का जिक्र भी पुराणों में हुआ है। कहा जाता है की  श्री कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र उठाया अब उनकी तर्जनी उंगली में चोट लग गई । तब वहां उपस्थित द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर  श्री कृष्ण की चोट पर बांध दिया। जिसके चलते श्री कृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर रक्षा करने का वचन दिया। इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।जब कौरवों  ने द्रौपदी कि साड़ी पूरी राजयसभा में खींचकर उनका अपमान किया, तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इस अपमान से बचाया और अपना वादा निभाया।

रक्षाबंधन से जुड़ी ऐतिहासिक कथाएं

इस पर्व के साथ कई ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े हुए है। जब चित्तौड़ की विधवा रानी कर्णावती को यह सन्देश भेजा गया की सुल्तान बहादुरशाह उनके राज्य पर चढ़ाई करने आ रहा है। तब रानी घबरा गई और अपने राज्य को बचाने के लिए एक रक्षा धागा हुमायूँ को भेजकर मदद की याचना की। एक मुसलमान होकर भी हुमायूँ ने राखी का स्वीकार किया और अपनी एक सेना उन्होंने चित्तौड़ भेज दी बहादुरशाह को पीछे हटना पड़ा। इस तरह उन्होंने अपनी बहन की रक्षा की। 

सिकन्दर की पत्नी ने हिन्दू राजा पोरस को राखी भेजकर अपन भाई बना लिया और युद्ध में सिकंदर की जान ना लेने का वचन लिया। पोरस ने भी राखी का स्वीकार किया और सिकंदर को जीवनदान दिया। इतिहास में हिन्दू - मुसलमान भाई - बहन की ऐसी हजारों कहानियां मौजूद है।

रक्षाबंधन से जुड़ी सामाजिक कथाएं



रक्षाबंधन का त्यौहार केवल भाई बहन तक सीमित नहीं है। प्राचीन काल में जब  शिक्षा पूर्ण हो जाने के बाद जब शिष्य जब गुरुकुल से विदाई होते थे तब गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बांधा जाता था ताकि गुरु का आशीर्वाद सदा अपने शिष्य के जीवन में बना रहे।आज भी यही प्रकिया आपको धार्मिक विधियों में देखने को मिलेगी।

 

जैन धर्म में रक्षाबंधन का महत्व

जैन धर्म में भी इस पर्व का काफी महत्व रहा है। जैन समुदाय इस दिन को शुभ मानते है। इस दिन की कहानी विष्णुकुमार मुनि द्वारा 700 ऋषियों की जान बचाने के साथ जुडी हुई है। 700 ऋषियों की जान बचाने की खुशी में लोगो ने अपने घरों में खीर, सिवैया आदि मिष्ठान्न बनाए थे। इस दिन श्रावणी पूनम थी। इस महान दिवस के याद में जैन समुदाय अपने हाथों में धागा बांधते है। विष्णुकुमार मुनि की पूजा करते है और कथा सुनते है। इस दिन जैनों के घर में खीर मिष्ठान्न के रूप में बनती  है।

आधुनिक युग में रक्षाबंधन

आज के इंटरनेट के इस दौर में त्यौहार के मायने बदल गए है। लोग त्यौहार के महत्व को बिसरा चुके है। आज की दौड़ भाग वाली जिंदगी में लोग एक दूसरे को मिलना भूल गए है । आज राखियां भाई के कलाई पर नही , लेकिन कंप्यूटर के द्वारा भेजी जाती है। अब मोबाइल पर ही राखी की शुभकामनाएं दे दी जाती हैं। आज त्यौहार में  सिर्फ एक दिखावा रह गया है। पूर्वजों द्वारा बनाए गए त्योहार हमारी संस्कृति के रक्षक है। त्योहार दुनिया में हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है। हमें उसे कभी बदलने के प्रयास नही करना चाहिये वरना हम दुनिया में से हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान खो देंगे।

 

निष्कर्ष

राखी एक सामान्य त्यौहार नही है बल्कि देवी और देवताओं ने भी इस पर्व को काफी महत्व दिया है। हमें भाई बहन के नाजुक रिश्तों को समझना चाहिए। एक दूसरे के प्रति अपने कर्तव्य को निष्ठा के साथ निभाना चाहिए। हमें दूसरों की बहन को भी मान सन्मान देना चाहिए और रक्षा करनी चाहिए। 

 

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