कवि सम्मलेन
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए || कुँअर बेचैन की ग़ज़लें
कुँअर बेचैन की ग़ज़लें दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए रहते हमारे पास तो ये टूटते जरू…
कुँअर बेचैन की ग़ज़लें दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए रहते हमारे पास तो ये टूटते जरू…