लठामार के आलावा भी कई नामो से प्रचलित है होली का त्योहार | holi festival of colors ke baare mein jankari hindi me

रंगों का त्योहार होली भारत का सबसे प्रमुख त्योहार हैं। यह त्योहार जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक त्योहार है,  वहीँ यह एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसमें कोई जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं हैं। सतरंगी रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को रंग और गुलाल लगाते हैं।

होलिका दहन


होली का त्योहार होलिका दहन यानि पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुन पूर्णिमा) के दिन से ही प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल को होलिका जलाई जाती है। होलिका दहन के लिए एक महीने पहले अर्थात् माघ पूर्णिमा को सडको गलियों और गावों में 'एरंड' या गूलर वृक्ष की टहनी को किसी एक स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाते है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात या सायंकाल को इसे विधिवत  जलाया जाता है। इस अवसर पर लकड़ियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिकापूजन किया जाता है और साथ पूजन के समय मंत्रउच्चारण किया जाता है।
होलिका का महत्त्व और उसकी ख़ासियत पर कई शायरों ने शायरी और गीत भी गाये है ये शायरी हिन्दू ने ही नही बल्कि उर्दू के जाने माने शायरों ने भी होली पर कुछ कविताएँ लिखी हैं।


नज़ीर अकबराबादी-

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़म शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की।
अमीर ख़ुसरो ने होली को कुछ अपने सूफ़ी अंदाज़-
दैय्या रे मोहे भिजोया री, शाह निजाम के रंग में
कपड़े रंग के कुछ न होत है, या रंग में तन को डुबोया री।
अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के शब्दों में होली की मस्ती का रंग कुछ इस तरह दिखाई देता है
क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी
देखो कुँवरजी दूँगी मैं गारी...
उर्दू के ऐसे बहुत से शायर हैं जिन्होंने होली पर अपने अलग-अलग अंदाज में शेरों शायरियाँ की हैं इस बात से स्पष्ट होता हैं की होली एक ऐसा त्योहार हैं जो जात और धर्म के भेद को ख़त्म करता है। और भाईचारे का संदेश देता हैं। होली का आनन्द एवं उल्लास का ऐसा उत्सव है जो सम्पूर्ण भारत में देखने को मिलता है। बस उत्सव मनाने के ढंग कहीं-कहीं अलग है। केवल पश्चिम बंगाल को छोड़कर होलिका-दहन सर्वत्र देखा जाता है। तो चलिए आज हम आपको बाते है कहाँ और किस तरह किस नाम से होली मनायी जाती हैं।

लठामार होली

अब बात आती है होली की तो हर किसी की जुबां पर बरसना का नाम सबसे पहले आता हैं। वैसे होली का आरम्भ फाल्गुन शुक्ल नवमी बरसाना से होता है। क्योंकि यहाँ पर लठामार होली खेली जाती है जो भारत ही नही पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लठामार होली बरसना में बड़ी धूम मचती है। इस होली का आन्नद उठाने के लिए देश विदेश के लोग भी आते हैं। लठामार होली धूलेंड़ी को प्राय: पूर्ण हो जाती है, इसके पहले हुरंगे चलते हैं, जिनमें महिलायें रंगों के साथ लाठियों, कोड़ों आदि से पुरुषों को घेरती हैं।

रंग पंचमी

महाराष्ट्र में खेली जाने वाली होली को रंग पंचमी कहते हैं। यह महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों में यह त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। आपको बता दे मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच-गाना और मस्ती होता है। साथ ही इन लोगो की परंपरा के अनुशार इस महीने में शादी तय करने के लिए  बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक-दूसरे के घरों में मिलने जाते हैं और काफ़ी समय मस्ती में बीतता है। महाराष्ट्र में पूरनपोली नाम का मीठा स्वा दिष्टर पकवान बनाया जाता है, और इस साथ ही इस मौके पर जगह-जगह दही की हांडी फोड़ने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।
डोल पूर्णिमा अथवा डोल यात्रा
पश्चिम बंगाल में होली को डोल पूर्णिमा अथवा डोल यात्रा कहा जाता है। इस दौरान रंगों के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रृंगार करते हैं। इस त्योहार पर सुबह से ही नृत्य और संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है, जो पूरे दिन चलता है।
कमाविलास / काम-दहन
तमिलनाडु में होली के त्योहार को कामन पोडिगई / कमान पंदिगाई / कमाविलास / काम-दहन के रूप में     मनाया जाता है। यह त्योहार कामदेव को समर्पित होता है इसमें कामदेव की पूजा की जाती हैं।

होला मोहल्ला

पंजाब में होली को होला मोहल्ला नाम से मनाया जाता है पंजाब का यह सबसे प्रसिद्ध उत्सव है। आपको बता दे सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में होली के अगले ही दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहा जाता है। सिक्खों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। इस दिन यहाँ पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और एक विशाल लंगर का आयोजन भी किया जाता है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए यहाँ पर होली को होला मोहल्ला कहा जाता हैं।

कामना हब्बा

हर जगह की तरह कर्नाटक में होली के पर्व को कामना हब्बा के रूप में मनाया जाता है। और माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भष्म कर दिया था। इस लिए यहाँ पर होली के एक दिन हर जगह का कूड़ा करकट, फटे वस्त्र आदि एक स्थान पर एकत्रकर के जलाये जाते है, जिसे होलिका दहन का नाम दिया गया है, साथ ही आस-पास के सभी पड़ोसी इस उत्सव को देखने आते हैं और एक दुसरे का मुह भी मीठा करते हैं।

निष्कर्ष -

होली कथा इस बात का संकेत करती है की सदैव बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है।

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने