सेविंग्स बहुत जरूरी होता है चाहे 10 साल में परिवार में किसी की शादी करनी हो, या फिर छुट्टियों पर जाना हो, या फिर कोई घर लेना हो या फिर उसका डाउन पेमेंट करना हो इन सब के लिए सही टाइम पर सेविंग्स करके रखना बहुत जरूरी है। आज के समय में सेविंग्स का सबसे अच्छा तरीका है सिस्टमेंटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी कि एसआईपी। इसका मतलब है हर महीने थोड़ा बचा कर रखना लेकिन कहाँ? म्यूच्यूअल फण्ड सही है ऐसा टैगलाइन विज्ञापनों में जरूर देखा होगा। आज के आर्टिकल में मैं आपको बताऊंगा की म्यूच्यूअल फण्ड सही में क्या है, NAV क्या है, पेमेंट मोड क्या है। और कैसे चुनाव करें अपने लिए सही म्यूच्यूअल फण्ड का।
म्यूच्यूअल फण्ड क्या है
शेयर्स का मतलब होता है किसी कंपनी में एक हिस्सा खरीद रहे हैं और आपको वोटिंग राइट्स मिलते हैं। उसी तरह से म्यूच्यूअल फण्ड में आप किसी कंपनी के एसेट का एक हिस्सा खरीद रहे हो लेकिन वोटिंग राइट नही होगा आपके पास। ऐसा क्यों? क्योंकि इसको एक फाइनेंसियल डेरीवेटिव कहा जा सकता है। डेरीवेटिव मतलब- शेयर एक टाइप का फाइनेंसियल प्रोडक्ट है लेकिन जब कुछ शेयर्स को एक साथ मिलाकर उनका बास्केट बनाकर जब उसको बेंचा जाता है तो उसको म्यूच्यूअल फण्ड कह सकते हैं और इसमें बांड्स भी आते हैं।
आसान भाषा में समझें तो किसी कंपनी ने शेयर्स खरीदकर अपना पोर्टफोलियो बनाया बहुत बड़ा पोर्टफोलियो जिसमे करोड़ों के शेयर्स हैं। अब उन्होंने इस पोर्टफोलियो में हिस्सेदारी आम जनता को बेंच दी ठीक बैसे ही जैसे कोई कंपनी अपने शेयर्स बेचती है। चूंकि इसमे कई सारे लोगो ने अपनी मर्जी से कंपनी द्वारा बनाये गए पोर्टफोलियो की हिस्सेदारी खरीदी है । इसलिए इसे म्यूच्यूअल फण्ड का नाम दे दिया गया ।
अब शेयर्स के साथ यह फर्क गया कि जहां आप मार्किट में कुछ ही शेयर्स को खरीद सकते हैं। म्यूच्यूअल फण्ड में पैसा लगाकर आप 100 कंपनियों के शेयर खरीद सकते हैं। मतलब शेयर मार्केट से रिस्क कम है। फिर क्यों कहा जाता है कि म्यूच्यूअल फंड्स आर सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क?
शेयर का प्राइस मार्किट hours में कम ज्यादा होता रहता है लेकिन म्यूच्यूअल फण्ड का प्राइस मार्केट क्लोज होने के समय सेट होता है।म्यूच्यूअल फण्ड के प्राइस को NAVPS में यानी कि नेट एसेट वैल्यू पर शेयर में मापा जाता है।NAVPS कैलकुलेट किये जाते हैं टोटल एसेट वैल्यू को , बास्केट में जितने शेयर हैं उनसे डिवाइड करके।
इक्विटी इंवेस्टिंग के साथ म्यूच्यूअल फण्ड का दूसरा बड़ा अंतर है diversified investment. मतलब AMC या फण्ड मैनेजर के पास अपना टीम होता है एनालिस्ट का और कंप्लायंस मैनेजर का। एसेट मैनेजमेंट कंपनी यानी AMC इनके हिसाब से चुनकर ही 100 कंपनी सेलेक्ट करता है।जिनका साल का परफॉरमेंस जितना अच्छा होता है उतना अच्छा रिटर्न म्यूच्यूअल फण्ड देता है। यह काम आप अकेले शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करके नही कर पाएंगे, क्योंकि इसके लिए वर्किंग कैपिटल और SEBI का अप्रूवल भी चाहिए। इसी काम को करते हैं approved fund manager जैसे निप्पोन, एचडीएफसी इत्यादि। आपको रिटर्न में मिलता है सेफ एंड सिक्योर बास्केट जिसमे हर एक अच्छे शेयर में आपका पैसा इन्वेस्ट किया जाता है। क्योंकि किसी एक कंपनी ने अगर बुरा परफॉर्म किया तो दूसरे से उसका रिटर्न मैनेज हो जाता है।
एक उदाहरण ले सकते हैं निफ़्टी 50 का. जहां पर पिछले 2 साल में एवरेज रिटर्न है 13 % का और मिनिमम रिटर्न है 6.5 परसेंट का। यह अमाउंट कोई भी FD रेट्स या रेगुलर इंटरेस्ट रेट से ज्यादा है।और इससे भी ज्यादा पिछले 20 सालों में निफ़्टी 50 ने कभी नेगेटिव रिटर्न नही दिया है।