उमरे दराज मांग कर लाये थे चार दिन हिंदी हास्य कविता

उमरे दराज मांग कर लाये थे चार दिन
दो televison ने लील लिए, दो इंटरनेट ने।।

टेलीविजन का क्या हाल है की आधे समय तो चैनलों पर नेता आते रहते हैं
आधे समय सांप बिच्छु भूत प्रेत
और हम यह सोचकर देखते रहते है की चलो नेताओ से तो ठीक हैं।

एक चैनल कह रहा है की हमने स्वर्ग की सीढियाँ लगा दी
दूसरा कह रहा है हमने सोने की लंका ठूँठ ली
और यहाँ अयोध्या ही गले में फसी पड़ी है
यह टीवी चैनल वाले तो गरीबी के दृश्य तब तक नही दिखाते है
जब तक इन्हें कोई स्पॉन्सर नही मिल जाता।

पिछले दस साल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सबसे बड़ा अपराध यह किआ है
की इस देश में जूते बनाने वाले भूखे मर रहे हैं और जूते खाने वाले सेलिब्रिटी हो गए

वो प्राइम टाइम पे बहस देखते हो आप
जैसे किसी जमाने में अवध के नवाव मुर्गे लड़ाया करते थे
चार जन वहसी आते हैं,
एक मुद्दे का समर्थक, दूसरा विरोधी।
तीसरा बुद्धिजीवी तीनो को हड़काने वाला,
चौथा एंकर तीनो को भड़काने वाला।
बहस होनी होती है गरीवी की रेखा पर,
और करते रहते हैं रेखा की गरीबी पर।
                                                           संपत सरल                      
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