कश्तियां बचपन की हैं मजधार में - सुदीप भोला


सुदीप भोला
बहुत ही कम समय में हास्य कविता पाठ  में अपना स्थान बनाने वाले सुदीप भोला जी का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में हुआ . अब तक सुदीप भोला जी १५०० से अधिक हास्य कवि सम्मलेन में अपना कविता पाठ कर चुके हैं. पैरोडी गीतों से अपने सफ़र का आरम्भ कर उन्होंने देश  में व्याप्त समस्याओं पर भावुक कवितायेँ लिख उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. और अपने आपको देश के अग्रज कवियों की पंक्ति मला खड़ा किया है . वर्ष २०१३ में प्रथम बार मैंने उन्हें सब टीवी के प्रोग्राम वह वाह क्या बात है में सुना था . तब श्रीमान सैलेश लोहडा जो की उस प्रोग्राम के संचालक थे उन्होंने सुदीप भोला के बारे में कहा था . की आज का यह छुपा रुस्तम
 बहुत जल्द ही देश के काव्य मंचो पर छाने वाला है. सुदीप भोला जी ने तब से लेकर आज तक दिन दुनी रात चौगुनी गति से तरक्की की और एक के बाद एक हजारो मंचो से अपनी कविता का पाठ क्र लोगो की खूब तालिय बटोरी . उनके द्वारा रचित कविता " जिहोने हंस कर देदी जान " आधुनिककाल में वीर रस पर लिखी गयी सर्व्श्रेस्थ कविता है.  जिसे जब जब सुनो तब तब आँखें नम हो आती हैं.


रेहवरो देखो तुम्हारे देश में... कश्तियां बचपन की हैं मजधार में
है उमर जिसकी खिलौने खेलने की वो खिलौने बेचता बाजार में

रोटियों का बोझ उसपर आ गया , जब  समय खिलने का था मुरझा गया।
आजकल मुखिया है वो परिवार में , कश्तियां बचपन की हैं मजधार में।

रेल के डिब्बे की सारी गंदगी , साफ़ करने को समझता बंदगी।
झिड़कियां मिलती उसे उपहार में,कश्तियां बचपन की हैं मजधार में।

बचपना  गुजरे जमाना हो गया, कारखाने में स्याना हो गया
छुट्टी भी मिलती नही इतबार में,कश्तियां बचपन की हैं मजधार में।

दो दिनों से उसने कुछ खाया नही , फिर भी उसने हाथ फैलाया नही।
कितन्नि ख़ुद्दारी है उस किरदार में,कश्तियां बचपन की हैं मजधार में।।

देश की संसद जरा तू शर्म और अमीरी देखना यह सोच कर।
कुत्ते बिल्ली घूमते हैं कार में, और वो खिलौने बेचता है बाज़ार में।

एक विज्ञापन करोड़ों में छपा, बाल श्रम कानून था जिसपर लिखा।
सो रहा लिपटा उसी अखबार में , कश्तियाँ बचपन की हैं मजधार में।।

उसके बचपन को बचा लो दोस्तों, है बहुत नाजुक संभालो दोस्तों।
खो न जाएँ लोरियाँ दुत्कार में, कश्तियां बचपन की हैं मझधार में।।
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