फिर दोनों के बीच चर्चा तेज हो गई। दोनों ही अपने-अपने शब्दों में दृढ़ हैं। इस विवाद को समाप्त करने के लिए, दोनों जंगल के राजा शेर के पास गए।
पशु साम्राज्य के बीच में, सिंहासन पर बैठा एक शेर था। बाघ के कुछ कहने से पहले ही गधा चिल्लाने लगा। "महाराज, घास नीला है ना?" शेर ने कहा, 'हाँ! घास नीली है। '
गधा, 'ये बाघ नहीं मान रहा। उसे ठीक से सजा दी जाए। 'राजा ने घोषणा की,' बाघ को एक साल की जेल होगी। राजा का फैसला गधे ने सुना और वह पूरे जंगल में खुशी से झूम रहा था। बाघ को एक साल की जेल की सजा सुनाई गई। '
बाघ शेर के पास गया और पूछा, 'क्यों महाराज! घास हरी है, क्या यह सही नहीं है? 'शेर ने कहा,' हाँ! घास हरी है। 'बाघ ने कहा,' ... तो मुझे जेल की सजा क्यों दी गई है? '
सिंह ने कहा, “आपको घास नीले या हरे रंग के लिए सजा नहीं मिली। आपको उस मूर्ख गधे के साथ बहस करने के लिए दंडित किया गया है। आप जैसे बहादुर और बुद्धिमान जीव ने गधे से बहस की और निर्णय लेने के लिए मेरे पास आये।”
कहानी का सार .... ....
2019 में अपना वोट सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार को दें .... बस गधों से बहस न करें अन्यथा आपको अगले 5 साल तक की सजा हो जाएगी।
गधे पर व्यंग
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं
गधे हंस रहे आदमी रो रहा है।
हिन्दोस्तां में यह क्या हो रहा है
जवानी का आलम गधों के लिए है
यह रसिया यह बालम गधो के लिए है,
यह दिल्ली यह पालम गधो के लिए है
यह संसार सालम गधो के लिए है
पिलाय का साकी तू पिलाय जा डट के
तू व्हिस्की के मटके पै मटके पै मटके
मैं दुनिया को अब भूलना चाहता हूं
गधो की तरह झूमना चाहता हूं
घोड़ो को मिलती नही घास देखो
गधे खा रहे हैं चवनप्राश देखो
यहां आदमी की कहाँ कब बनी है
यह दुनिया गधो के लिए ही बनी है
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पर बोले वो सच्चा गधा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है
मैं क्या बक गया हूँ यह क्या कह गया हूँ
नशे की पिनक में कहां वह गया हूँ
मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था।
ओम प्रकाश 'आदित्य'
ये कहानी आपको झकझोर देगी 2 मिनट में एक अच्छी सीख अवश्य पढ़ें....
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।
वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।
ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा
पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??
अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।
कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।
पंचलोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।
इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??
पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
शायद लगभग 70 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!
"कहानी" अच्छी लगे तो आगे भी बढ़ा दें..