राजनीतिक कविता
सम्पत सरल के राजनीतिक व्यंग
खाली कुर्सियों के बाबजूद भी लोग खड़े हैं ;दरअसल हिन्दुस्तानी आदमी ऐसी कोई चीज पर बैठना ही नही चाहता जिसपर लेट न सके आपकी संस…
खाली कुर्सियों के बाबजूद भी लोग खड़े हैं ;दरअसल हिन्दुस्तानी आदमी ऐसी कोई चीज पर बैठना ही नही चाहता जिसपर लेट न सके आपकी संस…
अभी उत्तर प्रदेश में उपचुनाव और बीजेपी दोनों शांति पूर्ण ढंग से निबट गये..... बीजेपी ने खूब धुँआधार प्रचार किया यह बात अलग है…
आज भी जो यह मानते हैं की भारत की आत्मा गांव में बसती है , मेरे ख्याल में उन्होंने गांव उतने ही देखे हैं जितनी की आत्मा। जिस …
स्त्रोत: फेसबुक संपत सरल जी आधुनिक युग के हिंदी के महान व्यंगकार है लीजिये प्रस्तुत है उनकी हास्य व्यंग से भरपूर रचना …