तुम मर क्यों नही जाते करते ही क्या हो तुम। आज तक कुछ किया है ढंग का जो अब करोगे। हम ही पल पोष रहे है तुम्हे और तुम्हारे बच्चों को। तुम तो इतना भी नही कर सकते कि अपने बच्चों के लिए दो जून की रोटी का इंतज़ाम कर सको । यह सब ताने दिमाग में मानो एक तूफान की तरह घूम कर सब कुछ तोड़ फोड़ कर गए थे
। जब पिंकू ने अपने पापा के मुंह से यह शब्द सुने 'तुमसे न हो पायेगा'। अगले ही पल पिंकू ने थान लिया कि वो अब जरूर कुछ करके दिखायेगा । और ज्यादा अपमान सहने की क्षमता अब बची नही थी उसमें। उम्र के ऐसे पड़ाव पर था कि ज्यादा इंतजार भी नही कर सकता था सही अवसर आने का। उम्र 30 के पार हो चली थी इस इंतज़ार में कई इस साल कुछ अच्छा हो जाएगा । परंतु साल दर साल यूँ ही बीतते चले गए । पिंकू के जीवन में कुछ अच्छा नही हुआ। अच्छा होता तो होता भी कैसे।
समय रहते पिंकू ने जब भी कुछ करने का प्रयास किया तो उसके पिताजी ने कभी उसको प्रोत्साहित नही किया कभी उसको असशीर्वाद नही दिया। वरन हर बार उसके काम में कमियां खोजकर उसका मजाक उड़ाया।
पिंकू के पिता बहुत आत्मविश्वासी वाले आदमी थे । उन्होंने अपने आत्मविशास के दम पर बचपन से ही बड़े बड़े कारनामे किये थे । पिंकू की दादी पिंकू को पिंकू के पिता की जीत के कारमाने बड़े चाव से सुनाया करती थी।
पिंकू को अपने पिता के कारनामे सुन अपने पिता पर मन ही मन बड़ा विश्वास होता था। कि उसके पिता उसको भी जीवन की राह दिखाएंगे। उसको अपनी तरह डोर दृष्ट्या बनाएंगे। पर उसके पिता का आत्मविश्वास और दूरदृष्टि हमेशा पिंकू का मजाक बनाने में ही लगी।
पिंकू न जाने क्यों फिर भी अपने पिता की हर मजाक हर ताने को सुनता गया । और मन ही मन टूटता चला गया
उसे पिता से जिस शिक्षा की उम्मीद थी वह उसे कभी न मिल सकी । उसके हिस्से में पिता से कुछ आया तो वह ताने , गुस्सा और लानत।
शायद पिंकू के पिता तो पिंकू पर विश्वास था कि पिंकू उनका बेटा होने के नाते उनमे विधमान हर गुण अपनी मां के पेट से लेकर आया है। इसीलिए पिंकू को उनसे कुछ बताने की जरूरत नही पड़ेगी।वह सब कुछ स्वयं ही कर लेगा।
ऐसा नही था कि पिंकू जन्म से ही इतना निकम्मा और नकारा था । पिंकू भी 80 परसेंट से ज्यादा नंबर लाता था अपनी क्लास में। लेकिन उसके पिता को इतने से संतोष न था उन्हें क्लास में अपने पिंकू को टोपर बनते देखना था।
पिंकू की शायद यही भूल रही हो या उसके परिश्रम की कमी हो पिंकू क्लास में 4थे स्थान पर तो आया पर कभी टॉपर नही हुआ।
पिंकू को पता था कि टॉपर बनना आसान था पर टॉपर बने रहना मुश्किल। और यदि बाह एक बार टोपर बनकर दूसरी बार नही बन पाता । तो उसके पिताजी को पहले की अपेक्षा अधिक गुस्सा आता।
इसीलिए पिंकू ने इस टॉपर वाले खेल से खुद को पहले ही अलग कर रखा था। बन जाय टॉपर तो ठीक न बने तो भी ठीक।
4थे स्थान पर आया पिंकू तो मन में संतुष्टि का भाव लिए उसने रिजल्ट माता पिता को दिखाया। मां ने तो कुछ नही कहा। पर पिता को बहुत क्रोध आया । उन्होंने पिंकू को बोला।
मैं तुझे स्कूल रिक्शे में भेजता हूँ तब जाकर तेरा 4था स्थान आ पाया। पहला स्थान पाने के लिए हाइकॉप्टर से भेजना होगा क्या। पिंकू जो अपने पिता की इस बात पर कोई प्रतिकिर्या नही दे सकता चुपचाप पिता के ताने से गया। परंतु मन ही मन टूटने लग गया।
एक बार दो बार हर बार जब भी पिंकू अपने पिता को अपना रिजल्ट बताता उसे हमेशा कुछ ऐसा ही सुनने को मिलता।
पिंकू की माँ उसके एग्जाम टाइम में अचानक से स्वर्गवासिनी हो गयी। अब पिंकू को सुनने समझने वाले कोई परिवार में नही था। पिंकू को याद कड़ा पिताजी से ताने सुन ने को मिल जाय करते थे। वाकी समय कभी भी उसका उसके पैर से संवाद नही था।
पिता अपने मन से कुछ बोलते भी थे तो हमेशा अपनी मजबूरियां और परेशानिया गिनाते । उन्होंने कभी पिंकू के मन को समझने का प्रयास नही किया।
समय के साथ पिंकू समाज से भी दूर होता चला गया। और उसके कार्य वास्तव में छीण होते चले गए।
अब हर कोई पिंकू से आगे था और पिंकू हर लाइन में सबसे पीछे।
शायद अपने पिता से पिंकू ने सबसे बड़ा आशीर्वाद यही पाया था ।
तुझपे कुछ नही हो पायेगा।
और यह आशीर्वाद फलता दीख रहा था।
उसके आसपड़ोस का हर बंदा इसे महसूस कर सकता था।
पर पिताजी का आत्मविश्वास अभी यह मानने को तैयार नही था। और पिताजी पिंकू को खूब कोशते रहते थे।
पूछ रहा अस्तित्व तुम्हारा कब तक ऐसे वार सहोगे
बोलो, बोलो कब प्रतिकार करोगे