सम्पत सरल के राजनीतिक व्यंग


खाली कुर्सियों के बाबजूद भी लोग खड़े हैं ;दरअसल हिन्दुस्तानी आदमी ऐसी कोई
चीज पर बैठना ही नही चाहता जिसपर लेट न सके

आपकी संस्था ने 80 साल के लोगो का सम्मान किया
निश्चित ही आपकी संस्था आभार की पात्र है
बरना अगर यह लोग राजनीति में होते
ही मार्गदर्शक मण्डल में बैठे होते

शादी शुदा हो तो अच्छा है पत्नी को साथ रखो
बरना मन की बात भी रेडियो से करते फिरोगे

विकास का एजेंडा कहकर आय थे
कुरसि मिलते ही अजेंडे के विकास में लग गए।

सवाल करो तो जूते निकालते हैं
कई मंत्री भी इतने गुस्से में रहते हैं
 की जिसको पीटने चलते हैं
उससे भी आगे निकाल जाते हैं

एक प्रवक्ता ने कहा की बापू का आज़ादी में कोई योगदान नही रहा
हमने उसको गंभीरता से नही लिया हो सकता है खुद के बापू के लिए कह रहे हों

इससे ज्यादा आर्थिक तरक़्क़ी क्या होगी की एक सज्जन की 50 हजार की कंपनी
16000  गुना बढ़ गयी
लेकिन ऐसे खिलाड़ी को कौन आउट करे जिसके पिता खुद ही अम्पायर हों 



यह मीडिया दिखता दिये के साथ है पर है हवा के साथ।

उमरे दराज मांग कर लाय थे चार दिन,
दो  टेलीविज़न ने लील लिए दो इंटरनेट ने ।

                                             सम्पत सरल
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