आज भी जो यह मानते हैं की भारत की आत्मा गांव में बसती है , मेरे ख्याल में उन्होंने गांव उतने ही देखे हैं जितनी की आत्मा।
जिस आदर्श गांव का जिक्र आज मैं करने जा रहा हूँ वैसे तो वह राजधानी दिल्ली से दशेक किलोमीटर पश्चिम में है।
चूँकि रास्ते में शराब के कई ठेके पड़ते हैं अतः यह घटती बढ़ती रहती है।
कहते हैं उक्त आदर्श गांव किसी जालिम सिंह नामक बसाया था ,
जो की निहायत ही ईमानदार और परोपकारी डाँकू थे, क्योंकि निर्वाचित नही थे।
हालाँकि बाद में उन्होंने भी डाँकू जीवन से VRS लेकर पॉलिटिक्स join कर ली थी।
उनको यह समझ आ गया होगा कि
एक डाँकू को जिनके यहाँ डकैती करने जाना पड़ता है
चुनाव जीत लेने पर वे ही लोग घर बैठे दे जाते हैं।
यों भी अपराध व राजनीती में वोएटिंग का ही अंतर तो रह गया है
संसद पर जिन आतंकियों ने हमला किया था सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोली मारने से पहले निश्चित ही कहा होगा
कि मानते हैं आप लोग बहुत बड़े अपराधी हैं ,लेकिन चुनाव जीते बिना अंदर नही जाने देंगे।
आदर्श गांव में दशों दिशाएं तीनो मौसम बारहों महीने व सातो बार होते हैं
बस एक तो गांव के उत्तर में हिमालय नही है और तीनो तरफ से समुद्र से घिरा हुआ नही है।
गांव वालों का अगर डाँकू जालिम सिंह आज जीवित होते तो यह दोनों चीजें भी गांव में होती।
गांव के लोग किफायती इस हद तक हैं की मिस्ड काल भी अपने फोन से नही करते हैं।
और दरियादिल ऐसे की करने के बाद फोन करके पूछते रहते हैं की मिस्ड कॉल मिला क्या।
गांव में कुल तेरह पर्यटक स्थल हैं तीन शराब के ठेके , एक मंदिर ,
एक प्राइमरी स्कूल ,एक पुलिस चौकी , दो कुएं और पांच शमशान घाट।
सरकारी ठेको के बावजूद हस्त निर्मित शराब को ही वरीयता दी जाती है
ताकि ग्लोब्लाइजेशन के इस भीषण दौर में आंचलिकता बरकरार रहे।
गांव के अधिकांश लोग शराब पीते हैं कई लोग नही भी पीते हैं।
जो नही पीते हैं वो पीने वालो को समझते बुझाते रहते हैं।
उनके समझाय से जब पीने वाले नही समझते हैं तो दुखी होकर वे भी पीने लगते हैं
लोगो में सरकारी नौकरियों के प्रति बड़ा मोह हैं ,
सबका प्रयास रहता है कि काम ऐसा हो जिसमे काम न हो ,
जहाँ तक काम का सवाल हैं मेहनत करने वाले को मजदूरी नही मिलती।
और जिसे मजदूरी मिल जाती है वो मेहनत बंद कर देता है ,
सबके आपसी सम्बन्ध गठबंधन सरकारों जैसे हैं अर्थात स्वार्थ ही दो लोगो को जोड़ता है।
उम्र का फसल भी रिस्तो में बाधक नही बनता दिन में बेटे का क्लासफेलो होता है,
शाम को वही बाप का ग्लासफेलो होता है।
गांव में जबसे हैंडपंप लगे हैं दोनों कुएं शर्त लगाकर कूदने के काम आ रहे हैं
स्कूल उतनी ही देर चलता है जितनी देर मिडडे मील चलता है।
पुलिस चौकी को लेकर मतभेद हैं की अपराध बढ़ने से चौकी खुली है या चौकी खुलने से अपराध बढे हैं।
गांव के अधिकांश लोग शराब पीते हैं कई लोग नही भी पीते हैं।
जो नही पीते हैं वो पीने वालो को समझते बुझाते रहते हैं।
उनके समझाय से जब पीने वाले नही समझते हैं तो दुखी होकर वे भी पीने लगते हैं
लोगो में सरकारी नौकरियों के प्रति बड़ा मोह हैं ,
सबका प्रयास रहता है कि काम ऐसा हो जिसमे काम न हो ,
जहाँ तक काम का सवाल हैं मेहनत करने वाले को मजदूरी नही मिलती।
और जिसे मजदूरी मिल जाती है वो मेहनत बंद कर देता है ,
सबके आपसी सम्बन्ध गठबंधन सरकारों जैसे हैं अर्थात स्वार्थ ही दो लोगो को जोड़ता है।
उम्र का फसल भी रिस्तो में बाधक नही बनता दिन में बेटे का क्लासफेलो होता है,
शाम को वही बाप का ग्लासफेलो होता है।
गांव में जबसे हैंडपंप लगे हैं दोनों कुएं शर्त लगाकर कूदने के काम आ रहे हैं
स्कूल उतनी ही देर चलता है जितनी देर मिडडे मील चलता है।
पुलिस चौकी को लेकर मतभेद हैं की अपराध बढ़ने से चौकी खुली है या चौकी खुलने से अपराध बढे हैं।