हिंदी हास्य व्यंग की दुनिया में एक खास पहचान रखने वाले विख्यात कवि "हुल्लड़ मुरादाबादी" Hullad Muradabaadi के दोहे हिंदी हास्य व्यंग का एक अद्भुत उदाहरण है जो व्यंग की तीखी मार के साथ हास्य का एक अभूतपूर्व समिश्रण है।लीजिये यहाँ पेश हैं 'हुल्लड़ मुरादाबादी के हास्य दोहे' -
बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यूँ रोये।
किसी भी हालत में तेरा , बाल न बांका होए।.
हुल्ल्ड काले रंग पे, रंग चढ़े न कोय।
लक्स लगा के कांबली , तेंदुलकर न होए।.
नेता नेता को कहता गधा , शरम न तुझको आये।
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाये। .
बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय।
पंगा लेकर पुलिस से , साबित बचा न कोय। .
धन चाहे मत दीजिये ,जग के पालनहार।
पर इतना तो कीजिये , मिलता रहे उधार। .
पैसा पाने का तुझे, बतलाता हूँ प्लान।
कर्ज़ा लेकर बैंक से ,हो जा अंतरध्यान। .
कोई कील चुभाये तो, उसे हथोड़ा मार।
इस युग में चाहिए जस को तस व्यवहार।
गुरु पोलिस दोऊ खड़े काके लागूँ पाये।
तभी पोलिस ने गुरु के पाँव दिए तुड़वाये।।
हुल्लड़ खैनी खाइये उससे खांसी होये।
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय।।
कर्ता बनकर जो जीये वो पाछे पछताय।
वो बैंगन तो है नहीं, पर भुर्ता बन जाय।।
पूर्ण सफलता के लिये दो चीज़े रख याद .
मंत्री की चमचागिरी पुलिस का आशीर्वाद।।
बूढा बोला वीर रस मुझसे पढा न जाये।
कहीं दांत क सेट ही नीचे न गिर जायें।
हीरे गड्ढा खोद कर, रखिये सदा छिपाय।
न जाने घर पर तेरे , कब छापा पड़ जाये।।
सत्यवान पर है गिरी, इस कलयुग में गाज।
सावित्री के साथ में भाग गए यमराज।।
जो भी दोहा पाठ में ताली नहीं बजाय।
उस नर को विथ फैमली, पुलिस पकड़ ले जाय।।
और पढ़ें :1. दोहावली- आधुनिक वक़्त के दोहे
2. हुल्लड़ मुरादाबादी की जीवनी
हौसलों को आज़माना चाहिए मुश्किलो में मुश्कुराना चाहिए
खुज़लीयन जब सात दिन तक न रूके, आदमी को तब नहाना चाहिए।
बोतलों से क्या गिला है दोस्तो , भाग्य में पऊआ लिखा है दोस्तो
औरतो ने घास डाली फंस गया आदमी कितना गधा है दोस्तो।
आइना उनको दिखने कि ज़रूरत क्या थीं वो हैं बन्दर उनको बतानें कि जरूरत क्या थी।
घर पे लीडर बुलाने कि जरूरत क्या थी नाशता उसको करानें कि ज़रूरत क्या थी।
चार बच्चे बुलाते तो दुआएं मिलती सॉंप को दूध पीलाने कि ज़रूरत क्या थी।
हुल्लड़ मुरादाबादी की व्यगं से लबरेज रचनाओं का रसपान करने के लिए अमेजन से उनकेेई लिखी पुस्तकेें घर सेे आर्डर करें
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हुल्लड़ मुरादाबादी
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kabir das poems/dohe parody in hindi
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Bhai sahb kabir ji ke dohe ko achhe se tod marod kar pesh kiya aapne
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