kaka hathrasi ki hasya kavita | award winning hindi hasya kavita


Hindi hasya kavita -kaka hathrasi





जा दिन एक बारात को मिल्यो निमंत्रण पत्र
फूले फूले हम फिरें यत्र तत्र सर्वत्र

यत्र तत्र सर्वत्र फड़कती बोटी बोटी
व दिन अच्छी नाय लगी अपने घर रोटी

कहें काका कविराय लार म्होड़े से टपके
कर लड्द्दुन की याद जीभ सांपन ली लपके

मार्ग में जब है गयी अपनी मोटर फ़ैल
दौड़ स्टेशन लायी तीन बजे की रेल

तीन बजे की रेल मच रही धक्कम धक्का
दो मोटे गिर परे पिचक गये  पतरे कक्का

कहें काका कविराय पटक दूल्हा ने खाई
पंडित जी रहे गये चढ़ गयो ननुआ नाई

नीच को करी थूथरो उपर को करि पीठ
मुर्गा बन बैठे हमहू मिली न कोऊ सीट

मिली न कोऊ सीट भीड़ मै बन गये भुरता
फिर ले गयो कोई हमारो आधो कुरता

कहें काका कविराय परिस्तिथि विकट हमारी
पंडित जी रहे गये उन्ही पे 'टिकस' हमारी

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