मधुआ जय शंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गयी इस कहानी में जब सरदार सिंह भूखे शराबी की शराब के प्रति ललक  देखता है तो आश्चर्य में पड़ जाता है  तब शराबी उसको बोलता है कि मौज बहार कि एक घड़ी के सहारे दुख के दिन काट लिए जाते हैं। क्यूंकी जीवन में दुख अधिक है और सुख कम । लेकिन आदमी जीने को मजबूर है जब बह जीवन कि दुख और विपातती भरी राहो में पस्त होने लगता है तब उसको आराम कि जारूरत होती है आराम के यह पल उसमे नयी ऊर्जा , ताजगी औरस्फूर्ति भर देते हैं। ऊर्जा से भरा बस आदमी फिर जीवन कि राहों पर निकल जाता है।कुछ देर के लिए वह आपने दुख भूल जाता है। उसे यह अनुभव होने लगता है कि दुख से भरे जीवन में सुख कि कुछ घड़िया अच्छी हैं।
                              दुख कि अग्नि में जलता हुआ वह व्यक्ति जब सुख कि शीतल छाया में सुकून कि सांस लेने लगता है तबउसको एक नशा सा छा जाता है । इस्स सुख कि याद के पल उसको एक अलग दुनिया में पहुंचा देते हैं इनहि यादों के सहारे आदमी दुख के दिन काट लेता है।
                  एक शराबी से इस तरह का जीवन दर्शन सुन सरदार सिंह पुनः  आश्चर्य में पड़ जाते हैं।उन्हे मन ही मन अपने जीवन कि यात्रा स्मरण हो आती है। और सुख के पलो को याद कर  मन ही मन मुसटाते हुए दुखो को भस्म करते हैं। और शराबी को दक्षिणा स्वरूप 1 रुपया देते हैं।     
एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने