गुरु पर व्यंग कविता
चपरासी खीर के पतीले पर दंड पेल रहे हैं।
हैडमास्टर रोटी बेल रहे हैं
सारे मास्टर मिलकर खाना परस रहे हैं
इस तरह स्कूलो में शिक्षा के बादल बरस रहे हैं।
एक पत्रकार बोले
मास्टर जी आप सुबह सुबह राशन लाते हैं
दिनभर उसे पकाते हैं शाम तक ठिकाने लगाते हैं
फिर आप बच्चों को कब पढ़ाते हैं?
मास्टर जी बोले
बच्चों को पढ़ाने की चिंता तो हमे सताती है
लेकिन उससे भी बड़ी एक चिंता हमे खाये जाती है।
की खाना स्वादिष्ट नही बने तो
अधिकारी तरह तरह की जांच के गोले दाग जाते हैं
और यदि खाना स्वादिष्ट बन जाये तो
खा पीकर बच्चे घर भाग जाते हैं॥
तो पत्र कार बोले आप मास्टर क्यूँ बने
मास्टर बोले इसकी भी बहुत करुण कहानी है भाई
बचपन में एक मास्टर था कसाई
हमारी बहुत करता था पिटाई
वस्तुतः बदला लेने की आग
उसी ने हमारे सीने में भड़काई
वो मास्टर जी भी गज़ब कर गए
हम उनसे बदला लेने लायक हुए
उससे पहले ही वो मर गए
तो हमने भी कसम खाई
हम भी बच्चों की उसी तरह से करेंगे ठुकाई
हम भी बनेंगे कसाई
लेकिन भाग्य की बिडंबना देखिये भाई
जब हमारा नंबर आया बनने का कसाई
तो सरकार ने हमे बना दिया हलवाई
आजकल हम शिक्षा और शिक्षण कार्य से कोशो दूर हैं
और स्कूल में हम गणित वाले नहीं
खीर पूड़ी वाले मास्टर के नाम से मशहूर हैं
इस बात का न हमे कोई शिकवा है न कोई गिला है
आज ही हमे ग्राम प्रधान की तेरहवी में माल पूए
बनाने का ऑर्डर मिला है
हरीश
पांच बरस पढ़ता रहा ट्यूशन सर के पास।
बहुत जुगाड़ किये मगर पप्पू हुआ न पास।।
सुनहरी लाल तुरंत
सारे मास्टर मिलकर खाना परस रहे हैं
इस तरह स्कूलो में शिक्षा के बादल बरस रहे हैं।
एक पत्रकार बोले
मास्टर जी आप सुबह सुबह राशन लाते हैं
दिनभर उसे पकाते हैं शाम तक ठिकाने लगाते हैं
फिर आप बच्चों को कब पढ़ाते हैं?
मास्टर जी बोले
बच्चों को पढ़ाने की चिंता तो हमे सताती है
लेकिन उससे भी बड़ी एक चिंता हमे खाये जाती है।
की खाना स्वादिष्ट नही बने तो
अधिकारी तरह तरह की जांच के गोले दाग जाते हैं
और यदि खाना स्वादिष्ट बन जाये तो
खा पीकर बच्चे घर भाग जाते हैं॥
तो पत्र कार बोले आप मास्टर क्यूँ बने
मास्टर बोले इसकी भी बहुत करुण कहानी है भाई
बचपन में एक मास्टर था कसाई
हमारी बहुत करता था पिटाई
वस्तुतः बदला लेने की आग
उसी ने हमारे सीने में भड़काई
वो मास्टर जी भी गज़ब कर गए
हम उनसे बदला लेने लायक हुए
उससे पहले ही वो मर गए
तो हमने भी कसम खाई
हम भी बच्चों की उसी तरह से करेंगे ठुकाई
हम भी बनेंगे कसाई
लेकिन भाग्य की बिडंबना देखिये भाई
जब हमारा नंबर आया बनने का कसाई
तो सरकार ने हमे बना दिया हलवाई
आजकल हम शिक्षा और शिक्षण कार्य से कोशो दूर हैं
और स्कूल में हम गणित वाले नहीं
खीर पूड़ी वाले मास्टर के नाम से मशहूर हैं
इस बात का न हमे कोई शिकवा है न कोई गिला है
आज ही हमे ग्राम प्रधान की तेरहवी में माल पूए
बनाने का ऑर्डर मिला है
हरीश
पांच बरस पढ़ता रहा ट्यूशन सर के पास।
बहुत जुगाड़ किये मगर पप्पू हुआ न पास।।
सुनहरी लाल तुरंत
हिंदी हास्य व्यंग्य के जाने माने हस्ताक्षर श्रीमान हरीश जी द्वारा रचित एक उत्तम कविता
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