*कोविड १९,*
लगातार चालीस पचास दिन के लॉकडाउन के बाद अचानक एक दिन पाया गया कि शराब दुकानें खोल दी गई हैं, इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गई थी पर यह आवश्यक ठहराया गया क्योंकि कदापि अर्थ व्यवस्था को बचाना था/है।
इतने दिनों से सब कुछ छोड़कर बैठे लोगों को लगा कि यह क्या हो रहा है, जब मेला लगाना ही था तब हमें घर में क्यों बंद रखा?
और अब एक नया नाटक आरंभ होने जा रहा है,
पर इस बार बिसात पर शराबी नहीं वरन् आपके हमारे बच्चे होंगे।
प्रदेश में एक जुलाई से स्कूल खोलने की बात की जा रही है,
जहां हम पर रोज नये नये नियम कानून थोपे जा रहे हैं, जैसे धारा १४४, सप्ताह में तीन दिन दुकान, सोशल (फिजिकल) डिस्टेंसिंग, शाम ५ फिर ६ और अब ७ बजे के बाद सब बंद, घूमने फिरने पर रोक,
अब स्कूल खोलने पर इन नियमों का क्या होगा, कौन इन छोटे बड़े बच्चों को मास्क (वह भी ठीक से) पहनाकर रखेगा, साबुन सैनिटाइजर का उपयोग सिखायेगा, और फिजिकल डिस्टेंसिंग की तो बात करना ही नहीं चाहिए, कौन ध्यान रखेगा इनका?
जब ये एक दिन की पिकनिक पर लापरवाही करते हैं, अपनी गपशप और फोन पर लगे रहते हैं तब रोज रोज की फिजिकल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर ये सम्भालेंगे ऐसा सोचना हमारी नादानी होगी।
अपने बच्चों को अभी तो स्कूल भेजना उचित ही नहीं है, ये लोग एक्सपेरिमेंट बेसिस पर स्कूल खोलेंगे, *फीस लेंगे* और कोरोना के केसेस बढ़ने पर स्कूल सबसे पहले बंद करेंगे।
बच्चों की सावधानी की क्या गारंटी होगी?
इतनी हड़बड़ी में, खासकर जब हम इस समय कोरोना इन्फेक्शन के पीक की प्रतीक्षा कर रहे हैं, हमारे नौनिहालों को कोरोना का चारा बनाकर तमाशा देखना कहाँ की बुद्धिमानी है?
यह तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि यह मामला केवल फीस की रकम के अरबों की हेराफेरी से ही संबंधित है, वरना बच्चे यदि २-४ महीने बाद स्कूल में जायेंगे तो क्या अंतर पड़ना है?
और sinθ, cosθ का मान इन दो चार महीनों में बदलने वाला नहीं है।
वैसे भी हमारा स्कूल सिस्टम हमें विकट परिस्थिति में बचना (जिंदा बचे रहना) *कभी भी नहीं सिखाता है।*
यह तो हमें हाथ कैसे धोना चाहिए अथवा दांतों पर ब्रश ठीक से कैसे करना है यह भी नहीं सिखाता है।पर फीस लेनी हो तो बच्चों को कोरोना के सामने डालने से गुरेज नहीं करता है।
सामान्य वायरस जो हर साल बरसात, ठंड में फैलता है, पहले यह स्कूली बच्चों में एक से दूसरे में फैलता है। यह बच्चा घर जाकर घर के दूसरे बच्चों, फिर माता पिता, फिर बुजुर्गों में इन्फेक्शन फैलाता है और इस तरह से यह वायरस पूरे घर को अपने आगोश में ले लेता है। यह हर वर्ष की सच्चाई है।
कोरोना भी एक वायरस है जो लगभग इसी तरह से बच्चों के माध्यम से हमारे घरों में आगे फैलेगा।
जुलाई का महीना बरसात के मौसम का प्रारंभ है, इस पहली बारिश और उमस के कारण वायरस और बैक्टीरिया बड़ी तेजी से फैलते हैं, इस कोरोना लहर के सामने अपने बच्चों को झोंक देने का अर्थ नरभक्षी जानवर के सामने बच्चों को लड़ने भेजना जैसा है।
यदि आप अभी भी अपने बच्चों को जल्दी स्कूल भेजना चाहते हैं तो स्वयं से कुछ प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें:
क्या आप मान चुके हैं कि कोरोनावायरस का संक्रमण कम हो रहा है?
क्या कोरोना बच्चों को ज्यादा हानि नहीं पहुंचाता है?
ऑटो, टेंपो पर लटकते हुए बच्चों में फिजिकल डिस्टेंसिंग रह पायेगी?
स्कूल के टीचर, आया बाई, चपरासी, बस ड्राइवर, कंडक्टर, गार्ड सभी कोरोना टेस्ट में नेगेटिव साबित होने के बाद ही बच्चों के सामने लाए जायेंगे?
एक एक कक्षा में जहां ४०-५०-६० बच्चे होते हैं वहां ५-६ फीट की दूरी बनाए रखी जाएगी?
प्रार्थना स्थल पर तथा छुट्टी के समय जब बच्चे आपस में टकराते हुए निकलते हैं तब यह दूरी बनाए रखी जा सकेगी?
लगातार मास्क पहनने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी (१७%तक) देखी गई है, बच्चों को ऑक्सीजन की जरूरत हमसे ज्यादा होती है, समय समय पर मास्क कैसे उतारना, पुन: कैसे पहनना, पानी पीने व टिफिन खाते समय मास्क कैसे हटाना, हाथ किस व कैसे सैनिटाइजर से कितनी देर तक कैसे धोना (रगड़ना) यह सब कौन बताएगा, पहले से काम के बोझ में दबा शिक्षक/शिक्षिका या स्कूल आपके पैसे से कोई नया कोरोना सुपरवाइजर नियुक्त करेगा?
क्या बच्चों में कोरोना मॉरटालिटि कम होना आपके हिसाब से काफी है ?
क्या बच्चे के इन्फेक्शन होने की अवस्था में स्कूल या शासन कोई जिम्मेदारी लेगा ?
इलाज के लाखों रूपए में कितना हिस्सा स्कूल या शासन वहन करेगा ?
कल को जब केसेस बढ़ेंगे, जो लगातार बढ़ रहें हैं, तब आपके गली मुहल्ले में होने वाली मौत आपको बच्चों समेत सेल्फ क्वाराईन्टिन को विवश कर देगी तब आपके बच्चे की पढ़ाई का साल और स्कूल में पटाई जा चुकी फीस का क्या होगा?
आपसे अनुरोध है कि एक जागरूक जनता और जिम्मेदार माता पिता बने और अपने बच्चों को कोरोना का ग्रास बनने न भेजें।
आप किसी भी धर्म को मानने वाले हों या किसी भी राजनीतिक पार्टी के समर्थक, यह जरूरी है कि इतनी जल्दी स्कूल खोलने का विरोध करें।
बच्चे हमारी सम्पदा से बढ़कर हैं, उन्हें हम दॉव पर नहीं लगा सकते हैं। जिन्हें पैसे कमाने हैं उन्हें कमाने दीजिए परन्तु इसके लिए हमारे बच्चे गोटियां नहीं बनेंगे।
आइए कोशिश करें कि स्कूल अभी न खोलें जाएं, हम सब मिलकर विरोध करेंगे तो बात बनेगी।
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जय भारत, वंदेमातरम।