किसान किसानों के मामले में लाए गए बिल को वापस लेने से केंद्र सरकार के मना करने के साथ ही कॉरपोरेट लॉबी में।
खुशी की लहर दौड़ गई है। इसका जीता जागता उदाहरण शेयर मार्केट है जो 15000 को टच करने जा रहा है। 15000 इंडेक्स निफ्टी फिफ्टी फिफ्टी फिफ्टी में जो कंपनियां अवेलेबल है, सुना है कि उनके जो मालिक है उन्होंने किसान का खाद्यान्न स्टोर करने के लिए बड़े-बड़े गोदाम बना रखे हैं और वह इंतजार कर रहे हैं कि कब खुला बाजार में मिले और कब एक किसान की मेहनत से उठ जाया गया। खाद्यान्न को औने पौने दाम पर बेचकर अपनी खदानों के गोदाम भरे कुछ जगह पर तो बाकायदा रानी के गोदामों को भरने के लिए सरकार ने। सरकारी कंपनी एफसीआई के गोदामों में खाद्यान्न स्टोन, आकर सीधा अडानी और। ने प्राइवेट कंपनियों को खाद्यान्न स्टोर करने का।
अफसर दिया है यह अफसर अभी तो सरकार अपने आप दे रही है और सरकार की कंट्रोल में कीमतें हैं। का ध्यान की लेकिन जब सरकार के कंट्रोल से मुक्त हो जाएंगे जब आप सीआई को रास्ते से हटा दिया जाएगा उस समय जो मुक्त रूप से।
रोजगार का सहारा किसी एक व्यक्ति की नौकरी है। एक मात्राएं का सहारा एक व्यक्ति की नौकरी एक व्यक्ति की नौकरी पर छह से सात जन्म परिवार में पलते हैं। दो घर के मेन सदस्य उनके माता पिता और उनके बच्चे अच्छे से तो सब तो अक्सर एक परिवार में होते ही है। एकल परिवार में उस परिवार को जब खदान प्राइवेट गोदामों से होने पानी कीमतों पर निकलेगा और वह कंपनी में प्रोसेस होकर जब उनकी थाली में आएगा तब उसकी कीमतें इतनी हो चुकी होंगी कि शायद उनकी तनखा थाली सजाने में ही खत्म हो जाए तो टाइम की थाली सजाने में किसान के दिन बहुत ज्यादा बदलने वाले नहीं है क्योंकि किसान को। खेत से खाद्यान्न उठने के तुरंत बाद ही बेचना पड़ता है। मार्केट में क्योंकि किसान के पास इतने बड़े भंडारण क्षमता नहीं रह गई है। उसके घर में उसके घर छोटे और छोटे और छोटे होते चले गए। एक बाप के दो बेटे हुए तो उनके घर आधा आधा हो गया। फिर दो बेटे हुए तो और याद आते हो गया। खेत भी आधी आधी हुए हैं, लेकिन जो उसकी उपज उनको स्टोर करने के हिसाब से किसी ने भी घर नहीं बनवाए हैं ना उनको सुखाने कानून को परास्त करने का कोई भी किसी ने भी नहीं सोचा। साहब ने शहर के हिसाब से शहरी मॉडल प्रधान और बाती चले गए। किसान यह सोच कर कि वह अपनी सरकार कभी भी आएगी। अच्छी सरकार आएगी तो मैं न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा देगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वह तुरंत अपना गल्ला मंडी में बेचकर पैसे ले लेंगे। बाद में करना थी उन्हीं निक्की भी तो पर लगभग उन्हीं कीमतों पर खरीदकर साल भर खाते।
लेकिन अब जो सरकार ने फैसला लिया है यदि किसान पहले ही बेच देता है। किसान खेत से फसल उठाने के तुरंत बाद यदि वह दामों में बेच देता है। प्राइवेट गोदामों के प्राइवेट लोगों के हाथों क्योंकि सरकार का जो 1 उपक्रम था, एफसीआई वह तो खत्म होने जा रहा है, उसको कंगाल कर दिया गया है। उसको इतना खोखला कर दिया गया है कि वह अपना कर्ज चुकाने लायक स्थिति में नहीं है तो उसको जब हटा दिया जाएगा। रास्ते से केवल और केवल प्राइवेट संस्थाएं बचेंगे। खाद्यान्न को स्टोर करने वाली तक खाद्यान्न जो उनको दामों से निकलेगा, उसकी कीमतें प्रोसेस होकर और ज्यादा आसमान को छू लेंगे। तब आज जो middle-class मन बना हुआ है, किसान का साथ नहीं दे रहा है। उसके मुंह से तब हाहाकार निकलेगी। वह दिन दूर नहीं है। यह दिन ज्यादा दूर नहीं है यह दिन। देखने के लिए आपके बच्चों को जवान होना नहीं पड़ेगा। आप अगले 5 सालों में यह दिन देख सकते हैं और मिडिल क्लास जो आज मन बना हुआ है किसान की बदहाली पर और किसान के समर्थन को उनको सरकार के एजेंडे के अनुरूप उसके कभी पा। कनाडा से समर्थित कभी कहीं से कभी कुछ कभी कुछ कह कर किसानों को कमजोर करने की सरकार की मंशा के साथ में है। वह मिडिल क्लास आगे अपनी आंखों पर आंखों पर थूक लगाकर ना रोए तो कह देना 5 साल बस बस 5 साल इन प्राइवेट गोदामों के हाथों आप किसान को सामान बेचने दीजिए। खदान भेजने दीजिए। फिर जो आपकी थाली में उनको दावत से निकलकर खाद्यान्न आएगा, वह इतना उसका रेट। जानकर हैरान रह गए, देखते रहना। यह टाइम बहुत जल्द आने वाला है अभी तो बस बैठ!
किसान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होता है। क्योंकि उसके द्वारा उपजाया गया अन्य देशबसियों द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण कोय जाता है साथ कि किसी फैक्टरियों और कारखानों में कच्चे माल की तरह उपयोग होता है । इसके बाद इनसे परिस्कृत उत्पाद बनाकर बाजार मैम उतारे जाते हैं । इस पूरी प्रक्रिया में कई लोगो को रोजगार उपलब्ध होता है । मसलन उक्त कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी इसके बाद थोक व्यापारी खुदरा व्यापारी इत्यादि।
इस सब को चलाने के लिए जो कच्चा माल तैयार किया जाता है वह किसान के द्वारा उपजाया जाता है । मतलब किसान इन सब रोजगार पाने वालों की वजह बनता है । क्यूंकी वह प्राथमिक उत्पादक है । प्राथमिक उत्पादक न हो तो फैक्टरियों के लिए कच्चा माल न उपज पाय। या पर्याप्त मात्रा में न उपलब्ध हो पाए।
देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी चलाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उठाने के बाबजूद भी यदि आज के समय में सरकार द्वारा किसी की सबसे ज्यादा अनदेखी की जा रही है तो वह है किसान। किसान की फसल के 1 कुंतल वजन की कीमत सं 1973 में किसी सरकारी दफ्तर में कार्यरत किसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को तन्खवाह से कहीं ज्यादा होती थी।
और आज उसके सम्पूर्ण खेत की उपज किसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की तनख्वाह से काफी कम होती है।
इस हद तक का पालन किया है सरकार ने सेवा क्षेत्र का और उतनी ही अनदेखी की गई है किसान की।
किसान यह बात रखे आंदोलन करे तो आप उसपर खालिस्तानी प्रायोजित पाकिस्तानी प्रायोजित देशद्रोही होने के आरोप लगाने से पहले इतना भी नही सोचते। कि किसान को आत्महत्या के लिए विवश करने वाली आप की ही नीतियां रहीं हैं । वर्ना किसान को आत्महत्या करने से समाज से इतर कोई सम्मान प्राप्त नही होता है जो वह खुशी से आत्महत्या कर रहा है।
सरकारी मुलाजिम को मंहगाई बढ़ने की वजह से अपने खर्चे कम नही करने पड़ते बल्कि उसके लिए सरकार मंहगाई बढ़ने से पहले मॅहगाई भत्ते का इंतजाम कर देती है । परंतु किसान को बोलती है कि आप अनापशनाप खर्चे करना बंद करो ।यह न करो वो न करो।
यह दोहरी नीति क्यों । क्या किसान आम नागरिक की तरह उस सम्मान से जीने का अधिकारी नही है । जो अधिकार एक सरकारी मुलाजिम को प्राप्त है। मॅहगाई बढ़ने से पहले मॅहगाई भत्ते पाने का अधिकार मुलाजिम को है । तो किसान को अपनी फसल का दाम तुरंत लेने तक का भी अधिकार नही। उसको फैक्टरियों की कृपा पर छोड़ दिया जाता है कि वे चाहे जितने समय में किसान को उसकी उपज का मूल्य दें। सरकारी मुलाजिम के जीवन की इतनी चिंता और किसान की विल्कुल चिंता नही। सरकार यह भेदभाव कब तक करती रहेगी।