Vasant Panchami geet मनीषा शुक्ला

 

Manisha Shukla ki कविताएं

कवयित्री मनीषा शुक्ला हिंदी कवि सम्मेलनों की एक प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ और शिक्षा इलाहाबाद व जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से प्राप्त की। वे इंजीनियरिंग (B.Tech in Electronics & Communication) में स्नातक हैं और वर्तमान में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) में कार्यरत हैं।

उन्होंने 500 से अधिक कवि सम्मेलनों में भाग लिया है। उनकी कविताएँ मुख्यतः श्रृंगार, हास्य और समसामयिक विषयों पर आधारित होती हैं। वे लाल किला कवि सम्मेलन (दिल्ली सरकार), पंचमढ़ी उत्सव (मध्य प्रदेश), अमर उजाला कवि सम्मेलन (बरेली) और अंतरराष्ट्रीय मंच (हांगकांग, 2019) पर अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं।

उनकी लेखनी में राधा-कृष्ण, मीरा, लैला-मजनू जैसे ऐतिहासिक प्रेम प्रसंगों से लेकर आधुनिक कामकाजी महिलाओं के जीवन की झलक मिलती है। हास्य-व्यंग्य में भी वे बेहद लोकप्रिय हैं, विशेषकर पति-पत्नी के रिश्तों पर आधारित उनकी हास्य कविताएँ खूब पसंद की जाती हैं। उनकी चर्चित प्रस्तुति "हर औरत की पसंद NOTA" सोशल मीडिया पर काफ़ी प्रसिद्ध हुई।

उनकी पहली पुस्तक 'मीठा काग़ज़' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है। उनके काव्य में भावनाओं और अभिव्यक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है, जिससे वे हिंदी साहित्य और मंचीय कविता में अपनी अलग पहचान बना रही हैं।


कंठ में पीड़ा सजा के, वेदना को स्वर बना के
जो लिखेंगे, आज उसको, सत्य होना ही पड़ेगा

अक्षरों के हम नियंता, हम कलम के सारथी हैं
युद्ध का हम ही बिगुल हैं, मंदिरों की आरती हैं
हम धरा पर आज भी सत्यम-शिवम की अर्चना हैं
हम वही जुगनूं कि जिनको रजनियां स्वीकारती हैं

हम सदा इतिहास के हर घाव को भरते रहे हैं
हम अगर रोएं, समय को साथ रोना ही पड़ेगा

हम कथा रामायणों की, धर्म का आलोक हैं हम
जो सजी साकेत में उस उर्मिला का शोक हैं हम
दिनकरों की उर्वशी के मौन का संवाद हैं हम
हम प्रलय कामायनी का, मेघदूती श्लोक हैं हम

बांचते ही हम रहे हैं पीर औरों की हमेशा
पुण्य के वंशज हमीं हैं, पाप धोना ही पड़ेगा

हैं हमीं, मीरा कि पत्थर के लिए जो बावली हो
हम वही तुलसी कि जिसके प्राण में रत्नावली हो
हम कबीरा की फ़कीरी, मस्तियां रसखान की हम
सूर के नैना, कि जिनसे झांकती शब्दावली हो

भाव के अंकुर हमीं से गीत के बिरवे बनेंगे
आखरों को पंक्तियों में आज बोना ही पड़ेगा

©मनीषा शुक्ला

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