सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम आने के बाद की ठीक पहली सुबह कैसी होती है?
ये सिर्फ उन घरों की नयी सुबह भर नही होती जिनके घरों के चिराग ने आसमां में अपना सूर्य स्थापित कर दिया होता है बल्कि एक सुबह मुखर्जी नगर,इलाहाबाद,पटना वाले 25 गजिया कमरे में अपने लिये सफलता का जादुई स्वर्ग खोजते उन छात्रों की भी होती है जिन्हें भोर का सूर्य एक आग का गोला दिखता है और जिनके आँखों के आगे मिचमिचाती पलकों के बाहर अंधेरा सा धुंधलका होता है और बहुत टटोल कर सुबह बिस्तर से उठ पानी के 20 लिटरिया बोतल तक पहुंच पाते हैं ये लोग।
जब बोतल के कपार पर पहनाई गई गिलासटोपी से आधा गिलास पानी पी वो वापस बिस्तर पर पहुँचता है तो एक प्रश्न पत्र वहां सिरहाने रखा पाता है।
ऐसा प्रश्न पत्र जिसमें साला इतने सवाल होते हैं, upsc के प्रश्न पत्रों से ज्यादा सवाल।
वो सारे प्रश्न मुट्ठी में ले लेट जाता है और वही बंद मुट्ठी सीने पर लाकर होले से खोल देता है।एक प्रश्न अब कुलबुल करते हुए सीने पे लोटते हैं।
वो जानता है कि आज के दिन वाली परीक्षा सबसे कठिन परीक्षा होती है और एक ऐसी परीक्षा जिसके लिये अटेम्पट ड्रॉप करने का भी विकल्प नही होता।आप प्रतियोगी हैं तो इस परीक्षा से गुजरना ही होता है।
दो प्रश्न पत्र होते हैं ऐसे परीक्षा में ।
एक प्रश्न पत्र में प्रतियोगी को खुद से ही कुछ सवाल पूछने होते हैं और करवट बदल बदल कर उसके जवाब खोजने पड़ते हैं।
हो जायेगा कि नही?
कर तो रहे हैं?
लगे तो हैं?
इतना तो किए?
लगे तो रहते हैं।
फिर से लगना होगा।
इसमें लगे रहना होता है।
लगे रहेंगे तो हो ही जायेगा।
होने वाले का ऐसे ही तो होता है।
होना होगा तो हो ही जायेगा।
इस तरह पहला प्रश्न पत्र हल करके प्रतियोगी जब दुसरा प्रश्न पत्र देखता है तो इसको हल करना उसी csat के पेपर की तरह होता है जिसे हल न कर पाने के कारण एक पूरी प्रतिभाशाली पीढ़ी सिविल सेवा के सपने वाली रेस से हमेशा हमेशा के लिये बाहर हो गई थी।
ये प्रश्न पत्र होता है, घर का! समाज का!
जैसे ही सुबह का अखबार हिन्दुस्तान के गाँव चौपाल पे पहुँचता है,वहीं से सारे सवाल तैयार हो छात्रों के मोबाईल पर घनघनाने लगते हैं।
सालों भर पढ़ने बोलने के बाद आज का दिन केवल सुनने का होता है। आज का दिन उन पिताओं का होता है जिनके भरोसे का नाम उस सौभाग्य वाली लिस्ट में नही होता है।
सालों भर खून पसीना बहा कर चुपचाप पैसा भेजने वाला बाप बस साल भर में आज ही के दिन बोलता है।
वो बाप जो हमारे लिये खर्चे की जुगाड़ में लगे जोर का अपना संघर्ष छुपा लेता है,आज के दिन उसका जज्बात बोल ही जाता है।
तुम्हारा नही हुआ रे?
यार,तुम्हारा कब होगा भाई?
कुछ सुने भी,जिला से 7 ठो का हुआ है।
इस बार का रिजल्ट में बहुत लोगों का हुआ है।
सब तो कर ही लेता है,तुमको क्या दिक्कत है भाई?
ए,सुनो न,हम कोय कमी रखे?
काहे नही होता है तुम्हारा?
ये सारे सवाल पूछ के पिता फोन काट देते हैं,जवाब नही सुनते हैं।और वो जवाब सुनने को सवाल पूछते ही नही हैं।
क्योंकि वो सबसे बेहतर जानते भी हैं,ऐसे सवालों के जवाब होते ही तो नही हैं।
छात्र बस सवाल सुन मोबाईल के उस पार चुपचाप पलथी मारे मुड़ी गोते कभी छोटी कभी मध्यम सांस ले चुपचाप आंख मुंदे रहता है।सारे सवालों का यही एक जवाब होता है उसकी तरफ़ से ये। यही चुप्पी उसकी चीख होती है और हाथ बिस्तर पर पटक पटक के हर सवाल का जवाब भी।
ये होता है साला "हिंदी माध्यम" का छात्र। और यही होता है उसका उस साल का,फिर उस साल का,फिर उस साल का,फिर पिछ्ले साल का,फिर इस साल का परिणाम।उसके लिये हर साल परिणाम का भोर यही सब ले कर आता है।
वो बहुत झोंक में किसी तरह खुद को संभाले आज भी fb पर होता है बेचारा।
पर आज उसके विमर्श में न राष्ट्रवाद होता है न गद्दार होता है।
आज तो अपने को न जाने कैसे एक आदमी बचाए रखते हुए वो सफल लोगों खातिर शुभकामना के पोस्ट लिखता है।
आईआईटी,आईआईएम और मेडिकल या विज्ञान के क्षेत्र से सफल हुए ये प्रतियोगी जानते भी नही कि ये कौन से लोग हैं जो उनके लिये शुभकामना सन्देशों से आज fb भर देंगे।
ये हिंदी माध्यम का अपना समाजशास्त्र है जो उनके डीएनए में होता है।हम जिला राज्य या देश की सफलता को अपना समझ उसकी खुशी में उतनी ही प्रसन्नता से शामिल होते हैं जितनी हमारी व्यक्तिक। ये सब सीखा सिखाया नही जाता,ये गाँव देहात का लड़का अपनी मिट्टी से लेकर आता है।
लेकिन एक सफल जमात जब हिंदी माध्यम की असफलता को उसकी योग्यता की कमी से जोड़ देता है,जब मेहनत और बुद्धिमत्ता में मात कह देता है,जब समझ और विश्लेषण की महीन कारिगिरी में कमजोर कह उन्हें इसी असफलता के लायक ही बता कर उनकी हँसी उड़ाता है तो आँख में लहू उतर आता है,किताब किताब का हर काला अक्षर बारूद की गन्ध सा लगता है।ये बिलकुल स्वीकार करने लायक बात नही है कि प्रतिभा की कमी ने हिंदी माध्यम को इस दौड़ से बाहर किया है हाँ,ये स्वीकार कीजिये कि प्रतिभा ने अपने को व्यक्त करने का जो माध्यम चुना है,असल में वही स्वीकार नही है हिन्दुस्तान के उच्च स्तरीय सर्वोच्च सेवा की उस दुनिया को जहाँ गाँव देहात से निकला माटी का लाल भी कई बार जा कर पावडर हो जाता है।वहां कुलीन लोगों की रेशम की कालीन पर बोरा चट्टी पर पसीना बहा के आई हिंदी चलेगी तो पूरा रैम्प वॉक ही तो गड़बड़ हो जायेगा अंग्रेजी चाल का। हिंदी में न वो लचक है ना ही नजाकत।
हिंदी तो जनसरोकार की भाषा है,वैसी भाषा जिसमें सरकार से लेकर सरकारी बाबू तक,सबसे सवाल पूछा जाता है।जिस भाषा में गरीब अपनी गरीबी का समाधान माँगता है और शोषित अपने लिये न्याय।
इसलिए ये भाषा कुलीन राजमहल हो चूके सरकारी महलों को चीख और शोर की तरह डरावनी लगती है।ये भाषा आपको देश की समस्या बताती है और इसी भाषा में आपको समाधान देना होता है।यही भाषा बताती है कि देश में कौन भूखा है और कौन बिना आवास या पानी के है।ऐसी मांग करती जन जन की भाषा किसी भी शालीन कुलीन वर्ग की शान्ति भंग कर ही सकती है।
इसलिए शासन चाहेगा ही कि शासक वो हों जो न शासित की भाषा बोलें न शासित उनकी भाषा समझे।
बस जब भाषा के अभाव में संवाद ही खत्म हो जायेगा तो आने वाली शिकायतें भी तो खत्म हो जायेंगी।फिर राज करेगा कागज,और कागज में आप शासक की भाषा लिख ही नही पाओगे,यहीं आपकी लड़ाई खत्म। प्रशासन कागज और कलम से कुछ भी जीत लेता है। और जन की भाषा बस राजनीति के मंच पर भाषण देती रह जाती है,कभी हमारे लिये शोक गीत गाती है,कुछ लोग दर्द भरे नग्मे लिखते हैं अपनीभाषा में ।
जिस भाषा में हमे रोटी,रोजगार और सम्मान मिलना चाहिये था,वो बस कविता या कहानी या गीत बना कर समय काट लने वाला खिलौना भर बन कर रह गया है।
हाँ,हिंदी भारत में बस समय काटने,दिन काटने की भाषा है।हिंदी का कवि विदूषक है,लेखक भिखारी और हिंदी का प्रतियोगी अभागा।
ये दुनिया का शायद पहला मुल्क है भारत जहाँ किसी को उसी देश में देश की अपनी ही भाषा में एक सम्मानजनक रोजगार या सेवा के लिये संघर्ष करना पड़ता है।देश की उच्च लोक सेवा में जाने की लोक की ही भाषा बाधा हो।
ये एक गुलामी है।
हम अंग्रेजी समेत दुनिया की किसी भी भाषा के विरोधी नही,लेकिन हमें हमारे देश में केवल हमारी भाषा भर जानने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा तो ये सीधे सीधे ऐलान है कि "हमे पढ़ना होगा,लड़ना भी होगा"
हिंदी माध्यम इसी जज्बे का नाम है।
upsc के खिलाफ़ एक लम्बी और जीती हुई लड़ाई का हिस्सा रहा हुँ इसलिए भरोसे के साथ बता रहा हूं,हिंदी माध्यम फिर पढ़ने बैठ गया होगा।
2019 की सफलता सूची में नाम मात्र की उपस्थिति के बाद भी वो संघर्ष के मैदान में पूरा पूरा खड़ा है।
आज सुबह बिखरे हुए सारे टुकड़े समेट कर दोपहर तक जुड़ के फिर से खड़ा हो शाम एक बार बाहर मैदान में चार राउंड की दौड़ लगा रात से फिर अगली लड़ाई के लिये भीड़ जायेगा हिंदी माध्यम।ये गाते हुए आज शाम बिताना साथियों कि "अपना टाईम आयेगा।"
बदलेगा,बदलेगा,अंग्रेज जमाना बदलेगा
हिंदी का फ़साना बदलेगा।
बादल को फिर हुरकुचेंगे
दोनों हाथों से धकेलेंगे
जैसे ही ठिकाना बदलेगा
जंगल का विराना बदलेगा।..
ये सिर्फ उन घरों की नयी सुबह भर नही होती जिनके घरों के चिराग ने आसमां में अपना सूर्य स्थापित कर दिया होता है बल्कि एक सुबह मुखर्जी नगर,इलाहाबाद,पटना वाले 25 गजिया कमरे में अपने लिये सफलता का जादुई स्वर्ग खोजते उन छात्रों की भी होती है जिन्हें भोर का सूर्य एक आग का गोला दिखता है और जिनके आँखों के आगे मिचमिचाती पलकों के बाहर अंधेरा सा धुंधलका होता है और बहुत टटोल कर सुबह बिस्तर से उठ पानी के 20 लिटरिया बोतल तक पहुंच पाते हैं ये लोग।
जब बोतल के कपार पर पहनाई गई गिलासटोपी से आधा गिलास पानी पी वो वापस बिस्तर पर पहुँचता है तो एक प्रश्न पत्र वहां सिरहाने रखा पाता है।
ऐसा प्रश्न पत्र जिसमें साला इतने सवाल होते हैं, upsc के प्रश्न पत्रों से ज्यादा सवाल।
वो सारे प्रश्न मुट्ठी में ले लेट जाता है और वही बंद मुट्ठी सीने पर लाकर होले से खोल देता है।एक प्रश्न अब कुलबुल करते हुए सीने पे लोटते हैं।
वो जानता है कि आज के दिन वाली परीक्षा सबसे कठिन परीक्षा होती है और एक ऐसी परीक्षा जिसके लिये अटेम्पट ड्रॉप करने का भी विकल्प नही होता।आप प्रतियोगी हैं तो इस परीक्षा से गुजरना ही होता है।
दो प्रश्न पत्र होते हैं ऐसे परीक्षा में ।
एक प्रश्न पत्र में प्रतियोगी को खुद से ही कुछ सवाल पूछने होते हैं और करवट बदल बदल कर उसके जवाब खोजने पड़ते हैं।
हो जायेगा कि नही?
कर तो रहे हैं?
लगे तो हैं?
इतना तो किए?
लगे तो रहते हैं।
फिर से लगना होगा।
इसमें लगे रहना होता है।
लगे रहेंगे तो हो ही जायेगा।
होने वाले का ऐसे ही तो होता है।
होना होगा तो हो ही जायेगा।
इस तरह पहला प्रश्न पत्र हल करके प्रतियोगी जब दुसरा प्रश्न पत्र देखता है तो इसको हल करना उसी csat के पेपर की तरह होता है जिसे हल न कर पाने के कारण एक पूरी प्रतिभाशाली पीढ़ी सिविल सेवा के सपने वाली रेस से हमेशा हमेशा के लिये बाहर हो गई थी।
ये प्रश्न पत्र होता है, घर का! समाज का!
जैसे ही सुबह का अखबार हिन्दुस्तान के गाँव चौपाल पे पहुँचता है,वहीं से सारे सवाल तैयार हो छात्रों के मोबाईल पर घनघनाने लगते हैं।
सालों भर पढ़ने बोलने के बाद आज का दिन केवल सुनने का होता है। आज का दिन उन पिताओं का होता है जिनके भरोसे का नाम उस सौभाग्य वाली लिस्ट में नही होता है।
सालों भर खून पसीना बहा कर चुपचाप पैसा भेजने वाला बाप बस साल भर में आज ही के दिन बोलता है।
वो बाप जो हमारे लिये खर्चे की जुगाड़ में लगे जोर का अपना संघर्ष छुपा लेता है,आज के दिन उसका जज्बात बोल ही जाता है।
तुम्हारा नही हुआ रे?
यार,तुम्हारा कब होगा भाई?
कुछ सुने भी,जिला से 7 ठो का हुआ है।
इस बार का रिजल्ट में बहुत लोगों का हुआ है।
सब तो कर ही लेता है,तुमको क्या दिक्कत है भाई?
ए,सुनो न,हम कोय कमी रखे?
काहे नही होता है तुम्हारा?
ये सारे सवाल पूछ के पिता फोन काट देते हैं,जवाब नही सुनते हैं।और वो जवाब सुनने को सवाल पूछते ही नही हैं।
क्योंकि वो सबसे बेहतर जानते भी हैं,ऐसे सवालों के जवाब होते ही तो नही हैं।
छात्र बस सवाल सुन मोबाईल के उस पार चुपचाप पलथी मारे मुड़ी गोते कभी छोटी कभी मध्यम सांस ले चुपचाप आंख मुंदे रहता है।सारे सवालों का यही एक जवाब होता है उसकी तरफ़ से ये। यही चुप्पी उसकी चीख होती है और हाथ बिस्तर पर पटक पटक के हर सवाल का जवाब भी।
ये होता है साला "हिंदी माध्यम" का छात्र। और यही होता है उसका उस साल का,फिर उस साल का,फिर उस साल का,फिर पिछ्ले साल का,फिर इस साल का परिणाम।उसके लिये हर साल परिणाम का भोर यही सब ले कर आता है।
वो बहुत झोंक में किसी तरह खुद को संभाले आज भी fb पर होता है बेचारा।
पर आज उसके विमर्श में न राष्ट्रवाद होता है न गद्दार होता है।
आज तो अपने को न जाने कैसे एक आदमी बचाए रखते हुए वो सफल लोगों खातिर शुभकामना के पोस्ट लिखता है।
आईआईटी,आईआईएम और मेडिकल या विज्ञान के क्षेत्र से सफल हुए ये प्रतियोगी जानते भी नही कि ये कौन से लोग हैं जो उनके लिये शुभकामना सन्देशों से आज fb भर देंगे।
ये हिंदी माध्यम का अपना समाजशास्त्र है जो उनके डीएनए में होता है।हम जिला राज्य या देश की सफलता को अपना समझ उसकी खुशी में उतनी ही प्रसन्नता से शामिल होते हैं जितनी हमारी व्यक्तिक। ये सब सीखा सिखाया नही जाता,ये गाँव देहात का लड़का अपनी मिट्टी से लेकर आता है।
लेकिन एक सफल जमात जब हिंदी माध्यम की असफलता को उसकी योग्यता की कमी से जोड़ देता है,जब मेहनत और बुद्धिमत्ता में मात कह देता है,जब समझ और विश्लेषण की महीन कारिगिरी में कमजोर कह उन्हें इसी असफलता के लायक ही बता कर उनकी हँसी उड़ाता है तो आँख में लहू उतर आता है,किताब किताब का हर काला अक्षर बारूद की गन्ध सा लगता है।ये बिलकुल स्वीकार करने लायक बात नही है कि प्रतिभा की कमी ने हिंदी माध्यम को इस दौड़ से बाहर किया है हाँ,ये स्वीकार कीजिये कि प्रतिभा ने अपने को व्यक्त करने का जो माध्यम चुना है,असल में वही स्वीकार नही है हिन्दुस्तान के उच्च स्तरीय सर्वोच्च सेवा की उस दुनिया को जहाँ गाँव देहात से निकला माटी का लाल भी कई बार जा कर पावडर हो जाता है।वहां कुलीन लोगों की रेशम की कालीन पर बोरा चट्टी पर पसीना बहा के आई हिंदी चलेगी तो पूरा रैम्प वॉक ही तो गड़बड़ हो जायेगा अंग्रेजी चाल का। हिंदी में न वो लचक है ना ही नजाकत।
हिंदी तो जनसरोकार की भाषा है,वैसी भाषा जिसमें सरकार से लेकर सरकारी बाबू तक,सबसे सवाल पूछा जाता है।जिस भाषा में गरीब अपनी गरीबी का समाधान माँगता है और शोषित अपने लिये न्याय।
इसलिए ये भाषा कुलीन राजमहल हो चूके सरकारी महलों को चीख और शोर की तरह डरावनी लगती है।ये भाषा आपको देश की समस्या बताती है और इसी भाषा में आपको समाधान देना होता है।यही भाषा बताती है कि देश में कौन भूखा है और कौन बिना आवास या पानी के है।ऐसी मांग करती जन जन की भाषा किसी भी शालीन कुलीन वर्ग की शान्ति भंग कर ही सकती है।
इसलिए शासन चाहेगा ही कि शासक वो हों जो न शासित की भाषा बोलें न शासित उनकी भाषा समझे।
बस जब भाषा के अभाव में संवाद ही खत्म हो जायेगा तो आने वाली शिकायतें भी तो खत्म हो जायेंगी।फिर राज करेगा कागज,और कागज में आप शासक की भाषा लिख ही नही पाओगे,यहीं आपकी लड़ाई खत्म। प्रशासन कागज और कलम से कुछ भी जीत लेता है। और जन की भाषा बस राजनीति के मंच पर भाषण देती रह जाती है,कभी हमारे लिये शोक गीत गाती है,कुछ लोग दर्द भरे नग्मे लिखते हैं अपनीभाषा में ।
जिस भाषा में हमे रोटी,रोजगार और सम्मान मिलना चाहिये था,वो बस कविता या कहानी या गीत बना कर समय काट लने वाला खिलौना भर बन कर रह गया है।
हाँ,हिंदी भारत में बस समय काटने,दिन काटने की भाषा है।हिंदी का कवि विदूषक है,लेखक भिखारी और हिंदी का प्रतियोगी अभागा।
ये दुनिया का शायद पहला मुल्क है भारत जहाँ किसी को उसी देश में देश की अपनी ही भाषा में एक सम्मानजनक रोजगार या सेवा के लिये संघर्ष करना पड़ता है।देश की उच्च लोक सेवा में जाने की लोक की ही भाषा बाधा हो।
ये एक गुलामी है।
हम अंग्रेजी समेत दुनिया की किसी भी भाषा के विरोधी नही,लेकिन हमें हमारे देश में केवल हमारी भाषा भर जानने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा तो ये सीधे सीधे ऐलान है कि "हमे पढ़ना होगा,लड़ना भी होगा"
हिंदी माध्यम इसी जज्बे का नाम है।
upsc के खिलाफ़ एक लम्बी और जीती हुई लड़ाई का हिस्सा रहा हुँ इसलिए भरोसे के साथ बता रहा हूं,हिंदी माध्यम फिर पढ़ने बैठ गया होगा।
2019 की सफलता सूची में नाम मात्र की उपस्थिति के बाद भी वो संघर्ष के मैदान में पूरा पूरा खड़ा है।
आज सुबह बिखरे हुए सारे टुकड़े समेट कर दोपहर तक जुड़ के फिर से खड़ा हो शाम एक बार बाहर मैदान में चार राउंड की दौड़ लगा रात से फिर अगली लड़ाई के लिये भीड़ जायेगा हिंदी माध्यम।ये गाते हुए आज शाम बिताना साथियों कि "अपना टाईम आयेगा।"
बदलेगा,बदलेगा,अंग्रेज जमाना बदलेगा
हिंदी का फ़साना बदलेगा।
बादल को फिर हुरकुचेंगे
दोनों हाथों से धकेलेंगे
जैसे ही ठिकाना बदलेगा
जंगल का विराना बदलेगा।..