मोदी की इस अपील का इसतरह विश्लेषण किया द हिन्दू अखबार ने

The Hindu
    
 अखबार में छपे एडिटोरियल शीर्षक "प्रकाश और ध्वनि : नरेंद्र मोदी के 9 मिनट प्रकाश पर्व पर" को पढ़कर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अखबार ने यह बताने की कोशिश की है कि कोरोना वायरस की त्रासदी के बीच जब अन्य देशों के वित्तमंत्री और राष्ट्राध्यक्ष आगे की इकॉनमी को वेहतर बनाने के ठोस प्लानो का एलान कर रहे हैं। लघु उधोग खस्ता हाल में है। इकॉनमी में एक रुकावट की स्तिथि हैं ।तब
 उस समय में मोदी ने अपने तीसरे संबोधन में कोई करकर कदम न लेते हुए देशवासियों से 5 अप्रैल को 9 मिनट का प्रकाश पर्व मनाने की अपील की है ।
अखबार ने आगे लिखा है कि ऐसी त्रासदी के बीच में जनता को एकजुट रखना बेहद जरूरी हो जाता हैं। और  मोदी जी के देश भर में अच्छे खासे फॉलोवर हैं जो उनके आह्वान पर मोदी की अपील मानने को तैयार हैं।
और अंत में अखबार लिखता है की कोई ठोस प्लान जो एकय को आगे बढ़ाए उसके वजाय मोदी जी ने प्रतीकात्मक  प्रकाश पर्व का आह्वान किया। उनके इस संबोधन में व्यवहारिकता के वजाय प्रतीकात्मकता को तरजीह दी है।

अखबार के इस संशय को धता बताते हुए मोदी की की गई अपील बहुत बड़ी तादात में लोगो ने मानी और अपने घरों पर दिए जलाये। यह मोदी की लोकप्रियता ही है जिसे लोगो ने उनकी अपील पर  अपने घरों में बे मौसम दीवाली मनाकर मनाया। कुछ भी खो मोदी से ज्यादा चतुर और चालक नेता आज के समय में कोई नही है। कोरोना की महामारी के बीच भी उन्होंने अपनी मार्केटिंग को कम नही किया अपितु और बढ़ दिया है। समझने वाले आसानी से सांझ गए होंगे कि यह जो थाली पीटने और घरों में दिए जलाने की अपील का कोरोना से तो कुछ वास्ता था नही। इस समय में मोदी जी की लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए यह दोनों ही अपील बहुत कारगर साबित होंगी। इस समय अन्य कोई नेता नही है जिसका नाम राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखित किया जा रहा हो न ही कांग्रेस में न ही अन्य कीसी पार्टी में। पर आपने मोदी जी है जो अपनी लोकप्रियता को भुनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं। यह लोगो के दिलो दिमाग में बने रहने का नायाब तरीका है। यही मार्केटिंग स्किल अगर कोई दस नेा सीख पाय तब न मोदी जी के समक्ष खड़ा हो पाए। वास्तव में मोदी और अमितशाह की जोड़ी में जनता के जज्बातों की सच्ची और बहुत अच्छी समझ है। जो इन्हें मैदान में बेहतर खिलाड़ी साबित करता है।।इन दोनों के समकक्ष नेताओं में ऐसी कुटनीतिक चपलता की साफ कमी झलकती है

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