राजनीति एक आवश्यक बुराई है

पढ़ाई और कमाई जिंदगी की दो सबसे बड़ी जरूरतें हैं। कहते हैं अगर पढ़ाई अछि कर लो तो अच्छी कमाई होना निश्चित है।
पर हमेशा ऐसा नही होता कम से कम आज के युग में तो यह सत्य है कि अच्छी पढ़ाई करके अच्छी नौकरी मिले। आजकल नौकरी लोगो या डिग्रीयों को केंद्र में रखकर नही बरन व्यक्ति विशेष के काम की दर देखकर मिलती हैं। जो प्रतिदिन ज्यादा काम करके दे सकता है उसकी तनखा ज्यादा जिससे प्रतिदिन काम कम हो उसकी तनख्वाह कम। बिल्कुल सही बात है।लेकिन राजनीति मे ऐसा बिल्कुल नही है। यदि कोई सांसद संसद की कार्यवाही जो कि साल में महज 60 से 80 दिन की होती होगी। उसमे से आधी से ज्यादा बैठकों में गोल रहे तो भी तनख्वाह पूरी पायेगा। सांसद चाहे 1 दिन के लिए बना हो उसको पेंशन पूरी मिलेगी। नेट भले ही 699 में 3 महीने चल रहा हो वो भी 4g पर संसद को नेट चलाने के लिए पूरे 15000 रुपये चाहिए प्रति महीने। राजनीति में उल्टा है । सबसे कम काम पर तनख्वाह सबसे ज्यादा । और राजनीति करने कर लिए कोई शैक्षणिक योग्यता होने की जरूरत नही है।

                     मसलन आप पढ़ना लिखना जाने हो या नही जानते हो आप राजनेता बनने के योग्य है। 
यहाँ लोग तर्क दे सकते हैं की नेता लोग या मंत्री लोग ज्यादा जिम्मेदारी सँभालते हैं इस कारण  उनके लिए यह सब सुविधाएं दी जाती हैं . पर आप सब लोग यह जानते हो की नेता लोग क्या काम करते होंगे जब उनकी स्पीच भी तो विभाग के सचिव लिखकर देते हैं. और तो और कोई भी विभागीय presentation उस विभाग के लोग देते हैं. और किसी भी मंत्रालय या विभाग में कार्यरत अधिकारी अपनी योग्यता में विशिष्ठ होते हैं और अच्छा वेतन पाते हैं.


क्या नेता लोगो को इतनी सारी सुविधाएं बहुत ज्यादा लोगो को एक साथ एक इकठ्ठा या एक टीम में बहुत लोगो को बनाये रखने के एवज में दी जाती हैं. इसमें कुछ सत्यता दीख पड़ती हैं. दरअसल नेता नौकरशाही और आम जन के बीच एक लिंक का काम करते हैं.लोकतंत्र में नौकरशाही और आम लोगो का जनजीवन एक दुसरे का पूरक बन देश के विकास में अपने ह्यूमन रिसोर्सेज का सही इस्तेमाल कर सकें .  इनदोनों, नौकरशाही और आमजन के बीच कोई टकराव न उत्पन्न हो इसके लिए नेता की आवश्यकता होती है राजनीति दरअसल क्या सही हैं और हकीकत में क्या हो रहा है इन दोनों के मध्य सामजस्य बिठाने का काम करती रहती है.

     चूँकि क्या सही है यह बात कुछ नेता लोग ही तय करते हैं. इसलिए कभी कभी राजनीति "सही' करने के चक्कर में "हकीकत" से बहुत दूर निकल जाती है.
                        

 
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