प्रस्तुत Hindi poem on Politics बहुत प्रसिद्द कविता है राजेंद्र राजन जी की
आने वाले हैं शिकारी मेरे गाँव में
जनता है चिंता की मारी मेरे गाँव में
फिर वही चौराहे होंगे
प्यासी आँख उठाये होंगे
सपने बीती रातें होंगी
मीठी मीठी बातें होंगी
मालाएं पहनानी होंगी
फिर ताली बजवानी होंगी
दिन को रात कहा जायेगा
दो को सात कहा जायेगा
आने वाले हैं मदारी मेरे गाँव में
जनता है चिंता की मारी मेरे देश में
शब्दों शब्दों आहें होंगी
लेकिन नकली बाहें होंगी
तुम कहते हो नेता होंगे लेकिन वे अभिनेता होंगे
बाहर बहार सज्जन होंगे भीतर भीतर रहजन होंगे
सबकुछ है फिर भी मागेंगे
झुकने की सीमा लाघेंगे
आने वाले हैं भिखारी मेरे गाँव में
जनता है चिंता की मारी मेरे गाँव में
उनकी चिंता जग से न्यारी
कुर्सी है दुनिया से प्यारी
कुर्सी है तो भी फलकामी
बिन कुर्सी के भी दुष्कामी
कुर्सी रास्ता कुर्सी मंजिल
कुर्सी नदिया कुर्सी साहिल
कुर्सी पर ईमान लुटाएं
सबकुछ अपना दांव लगायें
आने वाले हैं जुआरी मेरे गाँव में
जनता है चिंता की मारी मेरे गाँव में
राजेंद्र राजन