चंदा मामा दूर के हास्य कविता | सुनहरी लाल तुरंत की कविता | प्रॉपर्टी डीलर पर हास्य कविता | best hindi kavita |poetry in hindi

best hindi kavita by sunahari lal ji 

 

 चंदा मामा दूर के |Poetry in Hindi

chanda mama door ke


सब प्रॉपर्टी डीलर तुमको

 देख रहे हैं घूर के

 चंदा मामा दूर के

सोच रहे हैं चंदा पर भी
कॉलोनी कट जाय

चंदा मामा की प्रॉपर्टी आपस में बट जाय

फिर हम सब मिलकर बाटेंगे 
लड्डू मोती चूर के
 चंदा मामा दूर के

हम भी सोच रहे की अपनी किस्मत भी खिल जाय
एक सस्ता सा फ्लैट हमें किश्तों पर मिल जाय

बच्चे देख रहे हैं सपने चंद्रलोक के टूर के
 चंदा मामा दूर के

पत्नी की हैं चाह की मैं चंदा पर करवाचौथ मनाऊं
अपने प्राणनाथ पर मैं ऊपर से अर्क गिराऊ

मेरा पति धरती से देखे जलवे मेरे नूर के

 चंदा मामा दूर के

चाह रही है बहु मूनलाइट में खाना खाना
चंदा पर ही डिनर करुँगी उसने मन में ठाना 
बहुत खा चुकी सिके पराठे धरती पर तंदूर के 

 चंदा मामा दूर के


नेता चाह रहे चंदा पर भी संसद बन जाय

बही विधानसभा का झंडा लहर लहर लहराए

वहां इलेक्शन हो हम बाटें

 पउए रस अंगूर के

 

 चंदा मामा दूर के

सब प्रॉपर्टी डीलर तुमको

 देख रहे हैं घूर के

                                                                             सुनहरी लाल तुरंत



चिकने गालों पर कहीं मजनू फिसल न जाएं
इसीलिए करतार ने ब्रेकर दिए बनाएं।

किसी वजह से आपके पिचक गए हों गाल
बर्र ततैया छेड दो फूल जाएं तत्काल।।

मूछै लंबी राखिये मूछ बिना सब सून ,
ज्यों मंसूरी के बिना दिखै देहरादून।।




अपनी लाड़ो बिटिया को कुछ दिन बुलवा लो पापा जी,
रोज रोज के झगड़ों से तुम मुझे बचा लो पापाजी।।
दफ्तर जाना पड़ता है हम पांच बजे उठ जाते हैं
पहले पानी भरते हैं फिर चुहला भी सुलगाते हैं।
सवा छः बजे चाय बना धन्नो को जगाना पड़ता है।
कभी कभी तो गुस्से में थप्पड़ भी खाना पड़ता है।
थप्पड़ खाकर भी जिंदा हैं हमें संभालो पापा जी

अपनी लाड़ो बिटिया को कुछ दिन बुलवा लो पापा जी,

वैसे तो मौसम्मी का जूस दिन में पीती है
फिर भी मेरा खून पिये बिन एक पल भी नही रहती है।
मेरी गलती पर मेरे बच्चों को पिटना पड़ता है
ऐसे में मुझको कछुए की तरह सिमटना पड़ता है।।
कछुआ बनकर रेंग रहा हूँ मुझे उठा लो पापा जी

अपनी लाड़ो बिटिया को कुछ दिन बुलवा लो पापा जी

युद्ध शुरू होता है तब हथ गोले भी शर्माते हैं 
टोपे अश्रु बहाती हैं परमाणु बम थर्राते हैं।
घर की पौड़ी के बाहर जब बर्तन फेंके जाते हैं ऐसे में हम अपनी खटिया के नीचे घुस जाते हैं।

हम खटिया के नीचे हैं तुम खेंच निकालो पापा जी
रोज रोज के झगड़ों से तुम मुझे बचा लो पापा जी।।






















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