होली पर हास्य कविता
एक तो चढ़ी भंग दूजे होली हुड़दंग
सुनी आ रा रा पर कदम ठहराई पड़े बुढहू
बहु बढ़ी चटकोर रंग डारै धाइजोर
लखि रंग में सुरंग लहराई पड़ै बुढहू
लखि बगल से कट लिह छुटकी रपट
झट एहर उहर टहराई पड़ै बुढहु
वैसी मच गई हा हा री सब मारे किलकारी
जब खूंटा में अटक भहराई पड़ै बुढहु
एक दाईं डार दिहिं दुई दाईं डार दिहिं
कईं दाईं दिन में सतएँ गए हैं बुढ़हु
छोरी लिही है बटुई उघार दिह है घुंगटा वह
हद पद सब बिसराय गए हैं बुढ़हु।
शुगर सलोनी सजी सूरत सयानी देखी
हाथ मली मली पहताईं गए हैं बुढ़हु
जेह को चाहत रहा चार बोझ चई ला
ते फागुन मा अस मसताइ गएन बुढ़हु