Bharat mein vikas ke halat ka jayja

 2G का जमाना था तो इंटरनेट इसीलिए बहुत स्लो हुआ करता था कि 2G है यह 3G में अपग्रेड हो जाएगा तो इंटरनेट की स्पीड सभी को अच्छी मिलेगी। 3G आया तो सुरुआत के कुछ साल स्पीड अच्छी मिली भी । लेकिन जब 4G के आने की आहट हुई तो 3G की स्पीड 2G की तरह हो गयी। फिर 4G आया बहुत अच्छी स्पीड । वीडियो बिना बफर हुए चलने लगी।

लेकिन अब आहत हुई 5G की 4G की स्पीड फिर 2G के स्तर पर आ गयी। 

क्या यह आने वाली टेक्नोलॉजी को और बेहतर दिखाने के लिए वर्तमान सर्विस को जानबूझकर तो डाउन ग्रेड नही किया जाता है। क्योंकि असल में 4G इतना धीमा नही चलता कि गूगल सर्च इंजन खोलने में भी मिनट भर का समय लग जाय। 

और दूसरी ओर जहां कंपनियां 5G की होड़ में लगी हैं उनकी वर्तमान 4G सर्विस देखिये ।जो कंपनी 4G सर्विस ठीक से नही दे पा रही है। उसे 5G स्पेक्ट्रम का आवंटन ही न किया जाय। आईडिया और जिओ दोनो की ही 4G सर्विस मेरे सेत्र में इतनी बेहतर है जितनी 2G सर्विस हुआ करती थी । 

    मुझे लगता हैं अधिकतर टेलीकॉम कंपनियों ने केवल प्राइम लोकेशन के ग्राहकों को कवर करने के लिए वाला 4G टावर लगवा दिए। परंतु इस बात का कोई ख्याल नही रखा कि यहां से 5 km दूर बैठे ग्राहकों के पास भी यह सर्विस उतनी ही सही क्वालिटी में पहुंचेगी या नही।

      21 वी सदी में भी मुझे यह देखकर अचरज होता हैं की हमारे टाउन  के टाउन एरिया मुख्यालय से मात्र 5 km दूर गांव में 4G तो छोड़ो 2G सिग्नल भी नही आते। 

यहां लोग खेतों में जाकर या पेड़ पर चढ़कर अथवा गांव में सबसे ऊंची छत पर चढ़कर ही 2G मोबाइल सेवाओं को इस्तेमाल कर पाते हैं। इस्तेमाल मतलब केवल कॉल  कर पाते हैं। internet use करने के लिए इन्हें टाउन में 5Km घर से दूर आना होता हैं।

    यह है 21 वी सदी का असली भारत। 21 वी सदी के भारत का एक और चित्र

अधिकतर फसलों का mSP सरकार तय करती हैं MSP का मतलव होता है  न्यूनतम समर्थन मूल्य। मतलब तो आप समझ की चुके होंगे कि minimum support price से न्यून और कुछ नही हो सकता।

लेकिन यह देश भारत हैं यहां नन्यूनतम समर्थन मूल्य में से 20 रुपये की कटौती तो सरकार ने जायज कर रखी है। पर जब सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर 20 रुपये वापस ले लिए तो आढ़ती भला कैसे पीछे रहे जाय। 

जब सरकार बिना हाथ पैर चलाय 20 रुपये ले रही है । तो आढ़ती तो फिर भी दिन भर इतने लोगो से बात करता है वो क्यों पीछे रहता। उसने सीधे 55 रुपये काटे हर क्विंटल पर । रुपये काटे तो काटे हर क्विंटल पर 1 किलोग्राम गेंहू भी कम किये। यह आजाद भारत के दृश्य हैं जहां सबकुछ कानून सम्मत होने के बाद भी 75 रुपये की कटौती जायज है वो भी न्यूनतम समर्थन मूल्य में से।

     इतना होने के बाबजूद भी सरकार किसान हितैषी हैं। 

प्राइवेट तौल बंद हैं लेकिन मंडी के बाहर प्राइवेट खरीददारों की भीड़ लगी हैं 1760 रुपये प्रति कुंतल गेंहूँ खरीद रहे हैं । और यह सब सरकार के मुँह के नीचे हो रहा है। अज़ब goverment की गजब policy हैं। 




विकास की एक तस्वीर यह भी है कि दिल्ली ने इतना विकास कर लिया है  बहुमंज़िला इमारतों से सजा हुआ यह शहर लोगो को इतना लुभाता हैं कि देश भर से पलायन कर लोग दिल्ली में जा बसे । और आवादी का घनत्व 11000 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया । पर इस विकास के पीछे जो वनों और पेड़ों का विनाश हुआ । उसकी भरपाई दिल्ली oxegen से भरी ट्रैन प्रतिदिन खरीदकर भी नही कर सकता। औधोगिकीरण जरूरी हैं । पर इतना अधिक भी नही की प्रकृति का संतुलन ही विगाड़ दें। आज दिल्ली में न पीने की पानी की आपूर्ति है ना ऑक्सीजन देने कद लिए पेड़ों का घनत्व इतना ज्यादा है कि लोगो के फेफड़े शुद्ध हवा को शोखकर व्यक्ति को स्वस्थ रख सकें। 

दिल्ली में प्रचुरता हैं तो वह भवनों की और वाहनों की। भवनों को बनाने के लिए वनों को उजाड़ा गया। और रही बची शुद्ध हवा को प्रदूषित करने के लिए दिल्ली ने तादात से ज्यादा वाहनों को सड़कों पर उतरने की अनुमति दे दी।


 

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