बंगाल का राजनीतिक रंगमंच

 बंगाल विधानसभा का चुनाव इन दिनों काफी चर्चा में है । हर किसी के मुंह पर एक ही लाइन है बंगाल में खेला हो गया। चाणक्य की नीति फेल हो गयी । और दीदी फिर से चुनाव जीत गयी। मिथुन दा का कॉन्फिडेंस एक बार फिर फिल्मी ही साबित हुआ। 

दीदी ने खेला कर के सत्ता में वापसी तो कर ली। निश्चित रूप से शपथ ग्रहण ममता दीदी ही करेंगी। 

लेकिन अब खेला करने की चाणक्य की बारी है। हारी वाजी को जीतना जिन्हें आता है यूँही नही वह चाणक्य कहाता है। 

आज बंगाल में अराजकता चरम पर है। दीदी के समर्थक जिस तरह से खुशी मना रहे हैं। दीदी हँसे या रोएं उन्हें कुछ समझ नही आ रहा है। इसी उहापोह में फसी दीदी शायद अपने समर्थकों को रोक नही पा  रही हैं और वे ताबड़तोड़ आतिशबाजी किये जा रहे हैं। कभी अन्य पार्टियों कार्यकर्ताओ की पीठ पर कभी केंद्रीय मंत्री जी की कार पर , दीदी के समर्थक अगर इसी तरह खेलते रहे। तो चाणक्य को असल खेला करने से कोई नही रोक पायेगा।

और बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग जायेगा। आगे आप समझदार हो ही। हर बात लिखकर नही बताई जाती।


बंगाल में  ममता दीदी मुख्यमंत्री तो बन गयी पर वे किसी सदन की सदस्य नही हैं। ठीक इसी तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत जी जिन्हें कुछ दिन पहले उत्तराखंड का  मुख्यमंत्री बनाया गया था वे भी किसी सदन के सदस्य नही थे उधर चुनाव आयोग ने कोरोना काल में उपचुनाव कराने से मना कर दिया था। इस कारण 6 महीने के भीतर उपचुनाव कराकर त्रिवेंद्र जी का किसी सदन का सदस्य बन पाना असंभव हो गया था। 

भाजपा ने इसीलिए उनका इस्तीफा दिलवाकर नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण करवाया। और अन्य राज्यों के लिए एक नजीर रखी। शायद भाजपा यह मान कर चल रही हो कि बंगाल की मुख्यमंत्री भी इसी तरह अपना इस्तीफा दे देंगी। क्योंकि बंगाल की असेम्बली की सदस्य ममता जी हैं नही। और जब चुनाव आयोग उत्तराखंड में उपचुनाव में असमर्थता दिखा चुके है तो बंगाल देश से अलग तो हैं नही। 

राजनीति में मोरैलिटी का तड़का देकर बंगाल में मुख्यमंत्री परिवर्तन उतना आसान नही है जितना भाजपा इसे समझ रही हैं। भाजपा को इस रणनीति में कामयाब अब केवल और केवल कोरोना की तीसरी लहर कर सकती है। तीसरी लहर जल्द आय और तब तक रहे जब तक ममता का मुख्यमंत्रित्व 6 माह का न हो जाय। तब ही ऐसा संभव है संवैधानिक संकट को देखकर ममता जी खुद समझ जाय।  उत्तराखंड देवभूमि हैं यहां मोरैलिटी की वैल्यू हैं बंगाल दुर्गा व काली की भूमि हैं जहां नारी के संकल्प के आगे सब के खेल फेल हैं।


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