हनुमान चालीसा का पाठ हर मंगलवार और शनिवार को प्रत्येक हनुमान भक्त द्वारा किया जाता है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को बल बुद्धि और विद्या आशीर्वाद के रूप में देते हैं।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।1।।
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अज्जनि-पुत्र पवन सुत नामा।।2।।
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी।
कुमति निवार सुमित के सङ्गी।।3।।
कच्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डन कुजिचत केसा।।4।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मुँज जनेउ साजै ।।5।।
सङ्कर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।6।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर।।7।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ।।8।।
सुक्ष्य रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा।।9।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ।।10।।
लाय सज्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।11।।
रघुपति कीह्मी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।12।।
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।13।।
सनकादिक बह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।।14।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ।।15।।
तुम उपहार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना।।16।।
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना।।17।।
जुग सहस्त्र जीजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।18
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।19।।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते।।20।।
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।21।।
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।22।।
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक ते काँपै।।23।।
भूत पिचास निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै।।24।।
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।25।।
सड्ंकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।26।।
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के राज सकल तुम साजा।।27।।
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै।।28।।
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है पर सिद्ध जगत उजियारा।।29।।
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दर राम दुलारे।।30।।
अष्टसिद्ध नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता।।31।।
राम रसायन तुह्नारे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा।।32।।
तुह्नारे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।33।।
अन्त काल रघुवर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।34।।
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।35।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।36।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।37।।
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि माह सुख होई।।38।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।39।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हदय महँ डेरा।।40।।
।। दोहा ।।
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरत रूप।
राम लखन सीता सहित हदय बसहु सुर भूप।।