Atal Bihari bajpai poems in hindi

 पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई अपनी वाकपटुता वह हाजिर जवाबी की वजह से वे अपने विपक्षियों के भी प्रिय थे माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी के भाषण उनके भी विपक्षियों का भी मन मोह लेते थे और पक्षियों के पास उनसे तर्क करने के लिए शब्द ही नहीं होते थे माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म ग्वालियर में ग्वालियर में हुआ था जो कि मध्य प्रदेश में है माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी को कविता का बड़ा शौक था और उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक कविताएं लिखी जो उनके चिर परिचित अंदाज पर आधारित हैं जैसे कि मौत से ठन गई गीत नहीं गाता हूं यह गीत नया गाता हूं उनकी सारी कविताएं विपक्षी भी गुनगुनाया करते थे और उन का आनंद लिया करते थे माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म दिवस जो कि 25 दिसंबर को है सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है


अटल बिहारी वाजपेयी जी
                  कविता


मौत से ठन गयी


मौत से ठन गई, जूझने का मेरा कोई इरादा ना था ,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा ना था, रास्ता रोक कर 

खड़ी हो गई ,ये लगा जिंदगी से बड़ी हो गई ,

जूझने का मेरा कोई इरादा ना था ,

 मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा ना था ,

  रास्ता रोककर खड़ी हो गई,

   ये लगा जिंदगी से बड़ी हो गई,

   मौत की उम्र क्या दो पल भी नहीं,

   जिंदगी सिलसिला आज कल की नहीं,

   मैं जी भर जिया ....मैं मन से मरुं 

   लौट कर आऊंगा..कूच से क्यों डरूं

    तू दबे पांव, चोरी-छिपे से ना आ 

    सामने वार कर, फिर मुझे आजमा 

    मौत से बेखबर जिंदगी का सफर..शाम हर सुरमई...

  रात बंसी का स्वर बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,

      दर्द अपने, पराये कुछ कम भी नहीं

       प्यार इतना परायों से मुझको मिला...

     ना अपनों से बाकी है कोई गिला 

    हर चिनौती से दो हाथ मैंने किए ..

     आंधियों में जलाए है बुझते दिये 

     

      

कदम मिलाकर चलना होगा 


   कदम मिलाकर चलना होगा बाधाएं आती हैं आएं

    तरह तरह की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे ,

  सर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते-हंसते,

 आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा,

  बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रयल की घोर घटाएं, 

  पायों के नीचें अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

  लिया हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा..

       कदम मिलाकर चलना होगा ....

       हास्य-रूदन में, तूफानों में 

हास्य-रुदन में, तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में,

 उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, 

उंनन्त मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा ।

            कदम  मिलाकर  चलना  होगा....


गीत नया गाता हूँ


मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार

डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार

राणचंडी की अतृप्त प्यास मैं दुर्गा का उन्मत्त हास 

 मैं यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुंआधार 

 गृह अंतरतम की ज्वाला से जगती में आग लगा दूं मैं 

  दधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय

  हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय ।।

  मैं आदि पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भू पर

  पये पीकर सब मरते आए मैं अमर हुवा लो विष पीकर

   मैं आदि पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भू पर

  पये पीकर सब मरते आए मैं अमर हुआ लो विष पीकर

  अधरों की प्यास बुझाई है मैंने पीकर वह आग प्रखर 

 धरती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर

  भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन 

मैं नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय

 हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय



आओ फिर से दिया जलाएं


आओ फिर से दिया जलाएं

भरी दोपहरी में अंधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोडें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।

आओ फिर से दिया जलाए ।।


हम पड़ाव को समझे मंजिल 

लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

वर्तमान के मोहजाल में

आने वाला कल न भुलाएं।

आओ फिर से दिया जलाएं।।


आहूति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनो के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का बज्र बनाने

नव दधीचि हड्डियां गलायें।

आओ फिर से दिया जलाएं।।


गीत नही गाता हूँ


बेनकाब चेहरे हैं ,दाग बड़े गहरे हैं।

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ,

गीत नही गाता हूँ

लगी कुछ ऐसी नजर,बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नही पाता हूँ।

गीत नही गाता हूँ।


पीठ में छुरी से चाँद राहु गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणो में बार बार बंध जाता हूँ

गीत नही गाता हूँ।



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