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 की धूप मन को आराम से हटाकर काम पर लगा दो सच में आज बहुत अच्छा लग रहा है क्योंकि बहुत दिनों बाद काफी पर पेन से लिख रहा हूं आज मुझे अपने स्कूल के एग्जामिनेशन हॉल याद आ रहा है जिसमें सब्जेक्टिव क्वेश्चन पेपर आते थे सच कहूं तैयारी करके जितनी भी मन की स्टोरेज होती थी एग्जाम हॉल में लिखकर बड़ा सुकून प्रतीत होता था कॉपी पर कॉपियां भर देते थे थोड़ा सा पढ़ कर भी बहुत अधिक लिख देते थे और अच्छे नंबर आते थे मन बिल्कुल क्लीन हो जाता था आज सभी एग्जाम ऑब्जेक्टिव टाइप के एग्जाम है जिनमें मन से सोच कर लिखने का काम खत्म अब तो केवल टेक लगाने हैं और क्वेश्चन पढ़ने का काम रह गया है एक विद्यार्थी जो घंटों हटकर कुछ हजार लाइन दिमाग में स्टोर करता है और लाइन पर केवल विचार करके उसमें से एक लाइन भी उत्तर पुस्तिका में व्यक्त नहीं कर पाता है बल्कि उसको केवल टिक लगाकर ही व्यक्त करता है मतलब रख के जो भी दिमाग में उसने भरा वह दिमाग में ही रह गया और दिमाग में रहने के साथ ही वह दिमाग में पहले से मौजूद अन्य विचारों के साथ टकराव करेगा और डिस्टर्ब करेगा एग्जाम में उत्तर देने के लिए विद्यार्थी को कुछ लाइनें को दिमाग में तो रहना है मतलब की मेमोरी पटल पर लाना है और उसे व्यक्त नहीं करना है क्योंकि पेपर सब्जेक्ट ना होकर अब ऑब्जेक्ट गया है मन में रुके विचार को बड़े दुखदाई होते हैं क्योंकि वे बढ़कर बाहर आते हैं और कई गुना कई हजार गुना बढ़कर बढ़ा देता है मन को मन किसी विचार को यदि मन में रह जाए तो विचार जो विद्यार्थी में पड़े मन में स्टोर किए नहीं बिना निकाले मन मिलाद कब है अपने अन्य विचारों आज सूचना प्रौद्योगिकी का जमाना है हर तरफ सूचना ही सूचना लिखी पढ़ी हुई है यदि कोई सूचना को ग्रहण ना करें तो उसे अनभिज्ञ करार देने में लोग चंद सेकेंड का भी समय नहीं लेते और यदि वह सूचना ग्रहण करता है तो सूचना को व्यक्त कहां करें क्योंकि ऑफिस में जा रहे हो तो वहां सब रहना है और अपने काम पर ध्यान लगाना है और किसी से इधर-उधर की बात नहीं करनी है क्योंकि सभ्यता की यही परिभाषा है और यदि मन में आप कोई विचार डाले ही ना सूचना प्रौद्योगिकी के जमाने में आप यदि कोई समाचार ना ही सुने या ना ही देखें तो आपको अपने अल्पज्ञ होने का एहसास करा देते हैं लोग बहुत आसानी से इसलिए मन में विचार डालना भी जरूरी है समाचार सुनना ही जरूरी है चाहे वह अनर्गल ही क्यों ना हो और रोजमर्रा की जिंदगी में उनसे कोई फायदा हो या ना हो अब विचार डाले तो उन्हें व्यक्त कहां करें व्यक्त करने का कोई माध्यम नहीं है कोई माध्यम ना होने के साथ जो व्यक्ति इस तरह से विचारों को महीनों सालों तक अपने अंदर स्टोर करता रहता है और वित्त करने का माध्यम ना प्राप्त कर पाता है वही डिप्रेशन का शिकार हो कर रहे जाता है और विचारों में उलझा वह व्यक्ति की कार्य दक्षता भी बहुत कम हो जाती है इसके कारणों से अपने सामाजिक जीवन में भी बहुत ताने यह बहुत ही अपमान सहना पड़ता है और वह दिन दूनी रात चौगुनी स्पीड से डिप्रेशन में बढ़ता चला जाता है और लोग कहते हैं कि अच्छा वाला नौकरी कर रहा है पता नहीं किस बात का डिप्रेशन है अरे आपने उसके अंदर विचार तो डालें पर विचार को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं दिया विचार को सुनने कि आपने समय ही नहीं दिया उसको विचार करने के विचार को व्यक्त करने का कोई अफसर ही नहीं दिया तो उन विचारों को वह मन में स्टोर किए मन में एक दूसरे से उलझता हुआ विचार उसको कार्य में दक्ष उसकी कार्य दक्षता को कम तो करेंगे ही उसको नीचा तो दिखाएंगे ही कहीं ना कहीं इस तरीके से आज का इंसान डिप्रेशन का शिकार हो रहा है और लोग देख कर बस अचंभा सब प्रकट कर देते हैं कि पता नहीं अच्छा भला तो है सब कुछ तो है फिर भी क्यों डिप्रेशन में जा रहा है कुछ कहा नहीं जा सकता आज जो समस्या आ रही है छोटे से छोटे बच्चा भी डिप्रेशन में जाता है तनाव का शिकार हो जाता है उसमें और कुछ नहीं बस उसको विचार व्यक्त करने का अवसर दे दीजिए वह भी आपकी तरह हंसने खेलने लगेगा और वह भी एक अच्छा इंसान बनकर समाज में उतरेगा आप उसके विचारों को सुनिए तो सही माता पिता के पास आजकल अपने बच्चों से टाइम बच्चों के लिए टाइम नहीं है क्योंकि वे दोनों नौकरी करते हैं अच्छा जी उपार्जन करते हैं ताकि वे अच्छी से अच्छी सुविधा अपने घर में ला सकें मैं यह कहना चाहूंगा आप कितनी भी अच्छी सुविधाएं अपने घर में लाकर रख दीजिए यदि आप अपने बच्चों से बात नहीं करते उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं देते उनके विचारों को नहीं सुनते तो आप के द्वारा इकट्ठी की गई सारी सुविधाएं कहीं ना कहीं उनके लिए सुख का कारण न होकर दुखदाई ही बनेंगे और आपको भी बच्चे भी डिप्रेशन की ओर ही पड़ेंगे क्योंकि मन में एकत्र हुए विचार किसी भी सुविधा से यह किसी भी सुख की चीज एकत्र की आपके द्वारा एकत्र की गई किसी भी किसी भी चीज का लाभ अपने बच्चों को नहीं होगा यदि आप अपने बच्चों के विचारों को व्यक्त करने का मौका होने नहीं देते और उनके साथ समय नहीं बताते हैं तो जो भी विचार मन में डाले उसको व्यक्त करने का मौका दें बच्चे को बोलने का और बच्चे को समझने का प्रयास करें यदि आप ऐसी घर में लगवा दिए हैं और बच्चे का मन बाहर घूमने का है तो वह एसी की ठंडी हवा का एहसास लेकर भी उसके मन को सुकून नहीं आएगा जब तक वह बाहर घूमने नहीं जाएगा हो सके तो आप उसके लिए समय निकालें और उसे बाहर ले लेकर जाएं आपके द्वारा एकत्र की गई सुख सुविधा से उसके कोई भी लाभ ना होकर बल्कि परेशानी का ही सबब बनेगी और वह बच्चा घर में उदास सा रहेगा और या बाहर मुखी हुआ तो वह घर में तोड़फोड़ करेगा नुकसान करेगा और आप उसे डॉक्टर के पास ले जाएंगे डॉक्टर उसको एंटीडिप्रेसेंट देकर बस बोल देगा कि आपका बच्चा तनाव का शिकार है बेदर्द तनाव का शिकार नहीं आपके द्वारा दिया जा रहा है इस समय की अल्पज्ञ ता का शिकार है यदि आप उसे भरपूर समय देंगे उसको मन को पड़ेंगे उसको बाहर घूमने का मौका देंगे उसको समझेंगे तो वह बिना ऐसी और बिना सुख-सुविधाओं के भी मन से उतना सुखी रहेगा जितना सुखी में रहना चाहता है इसीलिए अपना ध्यान भौतिक सुख सुविधाओं से हटाकर मानसिक सुख की ओर भी लगाना चाहिए उतना ही जरूरी है जितनी जरूरी भौतिक सुख सुविधाएं हैं मैं यह नहीं कहता कि भौतिक सुख सुविधाएं कतई नहीं होनी चाहिए मानो आपके पास घर ही नहीं है तो व्यक्ति अपने रात के समय कहां बिताया वह रात के समय कहां आराम करेगा लेकिन यदि आपका सारा समय केवल भौतिक सुविधाएं उठा एकत्र करने में ही चला जा रहा है और आपको अपने परिवार में किसी से बात करने का मौका ही नहीं मिल रहा है और किसी व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है तो निश्चित रूप से वह व्यक्ति तनाव का शिकार होकर रह जाएगा और सारी सुख सुविधाएं नहीं की धरी रह जाएंगे उसके काम का कुछ भी ना रहेगा सारा ध्यान विचारों पर होना चाहिए मन में केवल वही विचार आए जिसकी जरूरत है इधर-उधर के फालतू विचार डालकर भी यह हम फालतू डर कभी-कभी अपने बच्चों को दे देते हैं जो उनके मन में बहुत सारे विचार को बढ़ाता है और उन्हें कोई भी कार्य करने से रोकता है अरे एक बार कार्य गलत ही तो होगा यदि वह डर का शिकार हो गया तो और हर कार्य से डरने लगा तो वह अपनी दक्षता खो देगा और आगे कभी भी काम करने योग्य नहीं रह जाएगा इसीलिए यदि आपको शुरू में काम गलत भी लग रहा है और बच्चे का मन है तो उसे करने दीजिए सेहत कितना नुकसान हो जाएगा नुकसान को कैलकुलेट करिए और आप उसको सुधारने का प्रयास करिए ना कि बच्चे को क्योंकि बच्चे के विचार व्यक्त हो जाने दीजिए यदि वह विचार व्यक्त नहीं करेगा तो वह कहीं ना कहीं उसके मन में तनाव का कारण बनेंगे और यह तनाव उसके जीवन को नरक बना कर रख देगा सच में मैं अपनी परीक्षा के दिनों में बहुत ही लाइट एंड रहता था और बड़ा ही हल्का पन महसूस करता था मन में जो भी विचार में जाते थे मैंने रिक्शा में व्यक्त कर देता था ऐसा नहीं है कि मैं परीक्षा में इधर-उधर के विचार लिखता था मैं मरने के बाद जो विचार पढ़कर एकत्र करता था सब्जेक्ट से रिलेटेड देखकर बहुत ही आनंद की अनुभूति होती थी और बड़ा ही हल्का पर रहता था यदि रात को मैं सो भी नहीं पता था तो भी मैं दिन में बिना थके बिना नींद लिए भी अच्छा महसूस करता था क्योंकि मन में जो भी विचार व्यक्त करके मैं परीक्षा में लिखता था मन बड़ा शांत रहता था और शांत मन से बड़ा ही आनंद महसूस होता था जिससे नींद की कमी का एहसास नहीं होता था परंतु वक्त के साथ मेरी आदत कुछ ना कुछ पढ़ते रहने की पड़ गई और समय रहते उसको व्यक्ति ना कर सका क्योंकि मेरे पास व्यक्त करने का कोई साधन नहीं था अपने विचारों को ना ही मैं लिखता था और ना ही मैं किसी एग्जाम में बैठा हूं जब से मेरी पढ़ाई छुट्टी है तब से मैंने अपने विचारों को व्यक्त करने का सारा रास्ता समाप्त कर लिया मैंने कहीं भी अपने विचारों को नहीं लिखा किसी व्यक्ति से बात करके अपने विचार उसके समक्ष प्रकट नहीं कि मन में अपने विचार एकत्र हो गए कि मेरे कार्य दक्षता को ही प्रभावित करने लगे मैं पहले जितना पढ़ पाता था ना मैं उतना पढ़ पा रहा था और मैं पहले जितना अन्य कामों को भी कर लेता था ना मैं उतने कामों को कर पा रहा हूं मैं एक सब कुछ जानते हुए भी कुछ ना कर पाने वाला इंसान बनकर रह गया हूं मानो जैसे मैंने कोई पढ़ाई ही ना की हो या मैंने किसी भी चीज को समझा ही ना हो तो मुझ में और एक अनपढ़ व्यक्ति में अंतर ही क्या रहेगा सब कुछ जान लेने की इच्छा में मैंने अपनी कार्य दक्षता को कर एक अनपढ़ की तरह बनकर रह गया हूं और दोनों में जब समानता है तो फिर मेरे पढ़े लिखे और उसके ना पढ़े लिखे होने में क्या अंतर है इसीलिए मन में केवल उतने ही विचार लाना चाहिए जितना कि आप व्यक्त कर सकें या अपने काम में ला सके या अपनी कार्य दक्षता को बढ़ा सकें केवल ज्ञान की प्राप्ति के चक्कर में अनेक अनेक अनेक विचारों को मन में एकत्र करते रहना भी मूर्खता ही है क्योंकि वो एक ना एक दिन आप को मूर्ख बना ही देगा मूर्ख बनकर इस बात का एहसास करके आप अपने समय की बर्बादी कर सकते हैं करते रह कर या फिर आप अभी मेरी बात को मान कर अपने मन में एकत्र हो रहे अनर्गल विचारों को व्यक्त करके एक बेहतर इंसान बनने की ओर कदम बढ़ा सकते हैं मैं तो बस इतना ही कहना चाहूंगा कि आप अपने मन में आ रहे विचारों पर बड़े ही पैनी नजर रखिए और मन में कोई ऐसा भाव यह सब चार मत लाइए उसको कि आप व्यक्त ना कर सकते हैं या मन में से निकालना सकती हूं मन में यदि कोई विचार पड़ा रह गया तो वह कई हजार गुना बड़ा होकर आपके लिए बड़ा ही दुखदाई हो जाएगा यदि आप से व्यक्त करेंगे तो व्यक्त करने के लिए उचित माध्यम ना ढूंढ पाएंगे और यदि व्यक्ति नहीं करेंगे तो वह मन में आ रहे अन्य विचारों के साथ फालतू का घालमेल कर उन्हें बर्बाद करेगा और उनको डिस्टर्ब करेगा इसीलिए आपसे मेरा अनुरोध है आप सभी अच्छे विचारों को मन में लाइए इसीलिए हमारे पूर्वजों ने अच्छे विचारों की महत्ता को बताया है हर जगह हर किताब में और हर समय अच्छे विचारों के ही संपर्क में रहें अच्छे व्यक्तियों के संपर्क में रहें इससे मन में अच्छे विचार हैं कोई अनर्गल विचार ना आए व्यक्तियों के संपर्क में रहने का फायदा है कि आपके मन में संतुलित विचार आते हैं अच्छे व्यक्तियों के साथ रहेंगे अच्छे विचार आएंगे संतुलित आएंगे संतुलित से मेरा तात्पर्य है कि मन में जरूरत से ज्यादा विचार नहीं आते हैं और ना ही मन में अतिरिक्त विचारों का भंडार खट्टा होता है आप हमेशा व्यक्तियों के साथ बात करिए अच्छे से व्यवहार करिए अच्छे विचार लाइए अच्छी-अच्छी बातें सीखिए और सब कुछ अच्छा होता चला जाएगा आज डिप्रेशन में हो रहे अनेकों अनेक लोगों को इस से बचाया जा सकता है केवल और केवल उनके विचारों को कंट्रोल करके केवल विचार ही तो है जो उन्हें डिप्रेशन में ला रहा है अन्यथा वह अच्छे-अच्छे कामगार हैं अच्छे-अच्छे पदों पर आसीन हैं तो उन्हें डिप्रेशन में लाना का काम केवल विचार ही तो कर रहा है उनके विचारों को कंट्रोल नहीं किया गया या उन्होंने अपने विचारों का भंडार इतना बड़ा लिया कि वह उचित माध्यम पर उसे व्यक्त ही ना कर सके समय-समय पर इसी वजह से ब्याज डिप्रेशन में चले जा रहे हैं या अभी ऑफिस में अकेले बैठे हुए इतने विचारों को एकत्र कर गए जो कि कहीं व्यक्त ना कर सके या जो कि संतुलित ना हो किसी भी एक फील्ड में जरूरत से ज्यादा विचार आ गए और न कर पाने की अवस्था में मन में असंतुलन की स्थिति बनाते रहे और मन्नत हो गया और व्यक्ति डिप्रेशन में चला गया कभी-कभी कार्य की अधिकता लंबे समय तक होने के कारण भी व्यक्ति को अन्यत्र जगह से काट कर रख देती है या उसका कटाव हो जाता है वह सामाजिक दायरे को छोड़कर एक निश्चित जगह पर बंद कर रह जाता है जिससे उसके विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है और व्यक्ति को विचार व्यक्त ना होकर एक निश्चित निश्चित निश्चित सब्जेक्ट के बेटा विचार उसके मन में एकत्रित होते रहते हैं होते रहते हैं जिससे वह जानबूझकर ना सही अनजाने में ही अन्य जगह से अन्य विचारों से कट जाता है क्योंकि उसके मन में एक ही जगह के विचार इतना ज्यादा घर कर गई हैं कि अन्य विचारों के लिए उसके मन में जगह ही नहीं है इस स्थिति में भी वह अंततोगत्वा उदासीनता को प्राप्त होकर तनाव का ही साधक बनेगा ना कि प्रसन्नता का और आनंद का साधक आधुनिक जीवन शैली बहुत ही घातक होती जा रही है यह भौतिक सुख सुविधाएं तो दे रही है परंतु मन के लेवल पर विचारों के लेवल पर यह व्यक्तियों को मशीन बनाने का प्रयास कर रही है जिससे व्यक्ति जो संतुलित कर लेते हैं अपने मन को बेतूल सफल होता पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर पा रहे हैं पर जो जरा सा भटका या जिसको समाज में अपनी बात व्यक्त करके दूसरे की बात सुनकर समझने की जरूरत है वे लोग तनाव का शिकार होते चले जा रहे हैं और धीरे-धीरे यह स्थिति और गंभीर होती जाएगी क्योंकि समाज में मुश्किल से 10 पर्सेंट लोग ही ऐसे होते हैं जो हर परिस्थिति में अपने मन को संतुलित कर लेते हैं अधिकतर लोग अपनी बातों को व्यक्त करके दूसरी बातों को सुनकर समझ कर मनन कर धीमे-धीमे अपने स्तर को बढ़ाते हैं और अपने मन को इतना मजबूत कर पाते हैं कि वह किसी भी विषम परिस्थिति में उसे संतुलित रख सके या लंबे समय तक एक ही काम करते हुए भी अपने मन को संतुलित रख सकें उसमें आ रहे एक ही तरह के विचारों से मन को इतना प्रभावित ना करें कि अन्य विचारों के लिए उसमें जगह ही ना रहे इस तरह का संतुलन बहुत ही लंबे अभ्यास के बाद आता है जोकि आधुनिक समाज बचपन से ही यह आनंद या यह सुविधा लोगों से छीन ले रहा है लोगों को बस मशीन के सामने बिठा कर उन्हें लगातार लर्निंग का गलत संदेश जो कि आज बहुत ज्यादा व्यापक रूप ले चुका है

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