kavi rajendra raajan

अदब में हादसों को इसलिए अवसर नही मिलता
कभी तो सिर नही मिलता कभी पत्थर नही मिलता
करो कोशिश की अपनी दाल से चिपके रहो चिपके
चमन में टूटे पत्तों को दोवारा घर नही मिलता
बनाया था बड़ी मेहनत से मैंने एक घर जिसमे
मुझे ही चैन से सोने को अब बिस्तर नही मिलता
कई शर्तें राखी उसने की यूं आओ तो आ जाओ
कहीं मजबूर बेटा बाप से खुलकर नही मिलता

रिश्ते सहना भी ज़िम्मेदारी है, चाहे जितनी भी जंग जारी है।
कितनी नाजुक घड़ी की सुइया हैं, और यह वक़्त कितना भारी है।।

 तेरी यादें गुलाब की मैंनेशारी भी शराब की मैंने
ज़िंदगी रोशनी के लिए कितनी रातें 
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