जज्बात- राजनीतिक व्यंग्य हिंदी हास्य कविता


राजनीति का इस कदर छाया है सुरूर
बात बात पर हर जज्बात पर नेता हो जाते है शुरू।
मुद्दा हो तो ठीक नेता वेबजह का मुद्दा बना लेते है। 
राजनीति की रोटी सेंकने को कहीं चौपाल लगा लेते है।
जनता हैरान थी अब परेशान है।
जाने किस मुगालते में जी रहा इस देश का हाईकमान है।

वो कहते हैं हम 16 घंटे काम करते है
उस काम का असर कहीं दिखता नही।
किसान जो कांग्रेस के जमाने में मज़बूर थे
चूल्हा आज भी उनका दो वक़्त जलता नही।



अब किसान खुद ही अपनी जिंदगी की ज्योत बुझा रहे है
लेकिन फिर भी राजनेता उनकी चिता पर
बैठकर राजनीति चला रहे है।
हाय यह कैसी राजनीति की माया है
जिसने इंसान के सीने से इंसान के प्रति प्रेम मिटाया है।

कुर्सी लगती सबको प्यारी है।
इसकी महिमा भी अजब निराली है ,
लोगो को लगता है कुर्सी सारी समस्याओ का हल है
जिसने कुर्सी पा ली वो यहाँ सफल है

हमे तो लागे कुर्सी सारी समस्याओ की जड़ है।
बैठ इसपर इंसान का ज़मी से जुड़ाव कट जाता है।।
और बिना जमी के कौन आगे बढ़ पाता है
क्योंकि गर आकाश तरक्की की सीमा है तो जमी आधार है

वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष

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