शिक्षक पर व्यंग कविता - फुरसतिया || हास्य व्यंग दोहे





सतगुरु हमसे रीझिकर, एक कह्या प्रसंग,
पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग।

गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट।

गुरुवर ऐसे चाहिए जो रखे न पढाई की आस.
बिनु आय हाज़िर करें और नकल करे पास..


पानी बरसत देखकर, गुरुमन  गया हरषाय,
‘रेनी डे’ कर क्लास में, पकौड़ी रहे छ्नवाय।

गुरुवर पहुंचे बोर्ड पर, लगे सिखावन ज्ञान,
अटक गये अधबीच में, मुस्काकर बोले-चलो खिलायें पान!

काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब?

चेले ऐसे चाहिये, जिससे गुरुवर को हो आराम,
राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम।

पढ़त-पढ़ावत दिन गया, गया न मनका फ़ेर,
अब तो परचा आउट करो, गुरुजी काहे करत हो देर।

1 टिप्पणियाँ

  1. आप भी आज जिस लेखनी को उपयोग में ले पा रहे हो श्रीमान ,वो भी किसी न किसी शिक्षक की ही देन है।हिंदुस्तान में गुरु परम्परा क्या है आप समझते होंगे,हर स्थिति और परिस्थिति के लिए केवल शिक्षक जवाबदेह और जिम्मेदार है क्या सही है ,हास्य व्यंग्य का विषय कम से कम गुरु शिष्य संबंधों को न बनाये🙏🙏

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