लीला तेरी अजब निराली है | Leela Teri Ajab Nirali Hai

  "लीला तेरी अजब निराली है"इस गीत के बोल पंडित रूपराम द्वारा लिखे गये है | गीत से पहले प्रस्तुत है पंडित रूपराम के द्वारा लिखे गये दो दोहे

माझ रहा जिस रूप को मूरख दोनों छाक।
ऐ रूप इस रूप की एक दिन होगी ख़ाक।।

मरे पराय रूप पर  हुई रूप मतभंग।
मूरख तेरा रूप भी जाय न तेरे संग।।

  

 लीला तेरी अजब निराली है गीत


अजब निराली अजब निराली प्रभु अजब निराली है
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है प्रभु लीला तेरी अजब निराली है



तू अजर अमर अज निराकार परमेश्वर देह कभी न धरै
बिन हाथ पैर के दुनिया में अनगिन कितने कर्म करे
हर जगह पे भगवन वास तेरा महा प्रलय तौ भी न मरे
तू पिता सभी है पुत्र तेरे भोजन दे सबका पेट भरे
डर जिसे तेरा वो निडर हुआ दुनिया सै बिलकुल भी न डरे
जिसकी लौ तुझसे लगी रहे सुख दे उसके सब दुःख हरे
हाकिम तू सारी दुनिया का कोई हुकुम तेरा टाले न टले
जो दीन बन्धु तेरी याद करे पल भर में भव सिन्धु तरै
सुख निधान जग फुल बगिया प्रभु तुही माली है
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है

किसी पेड़ पर फल लटकैं और किसी के ऊपर लगे फरी
कही ऊँचे टीले चमक रहे कहीं नीची भूमि करतार करि
खाक उड़े है बेशुम्मार कहीं घास खड़ी हरी हरी
धना विपन और कहीं पे उजड़ कहीं पे खुश्की कही तरी
हाय हाय कही वाह वाह खैर ख़ुशी कही परि मरी
गीत गवै कही चिता जरी द्वार पै नौवत बाज रही कहीं घर में अखियाँ नीर भरी
किस तौर करु गुणगान प्रभु धन्य धन्य तेरी कारीगरी
कहीं अँधेरा किसी के घर में रोज दिवाली है
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है


कोई शहनशाह बना दिया कोई टुकड़े मांगे दर दर पे
कोई बना दिया बेखौप खतर कोई वक़्त गुजारे डर डर के
कोई हसे कहेका मार मार कोई रोवै आंसू भर भर के
कोई गुजर करे कोई मौज करे अपने सर बोझा धर धर के
कोई देख किसी को ख़ुशी रहे कोई मिला ख़ाक में जर जर के
मुनियों के मन माया तेरी मोहने वाली है
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है

कहीं खार पड़े है धरती में कहीं ऊँची शिखर पहाड़ों की,
गर्मी ने तन गर्म किया कहीं शान दिखा दी जाड़ों की,
झील बना दी बड़ी बड़ी कहीं शोभा छोटे तालों की,
बड़े समुन्द्र नीर भरे कहीं छव है नद्दी नालों की,
रेगिस्तान बड़े भरी कहीं शोभा प्यारी बागो की,
कोयल  कू कु शब्द करे कहीं काव काव है कागो की,
दिन है सूरज निकल रहा कहीं रात है रंगत तारों की,
कोई शहर वीरान हुआ कहीं शान बुलंद बाजारों की,
कोई है गोरा किसी की बिलकुल काया काली है,
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है।

कोई चले नही बिन मोटर के कोई नंगे पैरो  भाग रहा 
कहीं ढेर पड़े जर जेवर के कोई क़र्ज़ किसी से मांग रहा,
किसी का दुश्मन बन बैठा कोई प्रेम किसी से पाग रहा,
कोई दुर्जन जन्म बिगाड़ रहा कोई सज्जन धार बैराग रहा,
महलों की अभिलाष करे कोई बनी हवेली त्याग रहा,
तेरी नजर में सब दुनिया की देखा भाली है।
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है।


कुल जहाँ में तेरा जलवा है तुझसा जल्वेगर कोई नही,
हर अफसर का तू अफसर है पर तेरा अफसर कोई नही,
ईश्वर तेरी शानी का दुनिया में दिलावर कोई नही,
जिसने ली शरण तेरी उसको खौप  कोई डर नही,
तू सबके भीतर बहार है पर तुझसे बहार कोई नही,
तू मात पिता तू स्वामी सखा तेरी बराबर कोई नही,
रूपराम के कष्ट हरो क्यूँ देर लगा ली है।
प्रभु लीला तेरी अजब निराली है।

प्रभु लीला तेरी अजब निराली है।




तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊं मैं
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊ मैं
याद भुलाई तेरी जब भी लाखो कष्ट उठाये हैं
क्या जानू जीवन में मैंने कितने पाप कमाए हैं
हूँ शर्मिंदा आप से क्या बतलाऊं मैं
तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊं मैं

मेरे पाप कर्म ही तुझसे प्रीत ना करने देते हैं
कभी जो चाहूँ मिलूं आपसे रोक मुझे यह लेते हैं
कैसे स्वामी आपके दर्शन पाऊं मै
तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊ मैं

तू है नाथ वरों का दाता
तुझसे ही सब वर सब पाते हैं
ऋषि मुनि और योगी सारे
तेरे ही गुण गाते हैं
छींटा देदो प्यार का होश में आऊ मै
तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊ मैं

जो बीती सो बीती लेकिन बाकी उम्र संभालूं मैं
प्रेम पाश में बंधा आपके गीत प्रेम के गा लूँ मैं
जीवन अपने आप का सफल बना लूँ मैं
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊ मैं
तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊ मैं



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