देख कलेजा फट जाता है, आँखों से आंसू बहते
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते कहते
कवि सुदीप भोला की किसानो को समर्पित एक मार्मिक कविता जिसने किसनो के दर्द को अपनी कविता से इस तरह बयां किया हैं जिसको पड़ कर लोगो की आंखे नम हो जाये। दोस्तों कहने को तो हमारा भारत कृषि प्रधान देश हैं, और किसान हमारे अन्नदाता लेकिन हकीकत तो ये हैं की हमे जिंदगी देने वाला अन्नदाता आज मर रहा है। ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा। जी हाँ राजनीति की सियासत में गरीब किसान मानो गेहू में घुन की तरह पीस रहे हो, वोट बैंक के लिए राजनीतिक पार्टियां हमारे भोले भाले किसानो से एक से एक बड़े-बड़े लुभावने वादे करते हैं और सरकार बनने के बाद उनकी तरफ कोई नहीं देखता हैं। कोई समझता दर्द उस किसान का जिसके कच्चे घर की छत टपकती है फिर भी वो किसान दुआ करता है बारिश की।
जो देता है खुशहाली जिसके दम से हरियाली
आज वही बर्बाद खड़ा है देखो उसकी बदहाली।
बहुत बुरी हालत है ईश्वर धरती के भगवान् की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
जरा सोचिये हमारे देश में अगर ये किसान नहीं होते तो क्या खाते हम लोग, जिन किसानों पर लाठियां बरसाई जाती हैं क्या उनके बिना हमरा देश कृषि प्रधान देश कहलाता? किसानो की स्थिति आज की दौर में बहुत दयनीय हो गयी हैं, कभी किसान को सूखे की मार झेलनी पड़ती है तो कभी बाढ़ की। ऐसे में बहुत सारे किसान कर्जदार हो कर आत्महत्या कर रहे हैं। एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख रोज मिटने वाला किसान खुद भूखा सो जाता हैं कवि सुदीप भोला ने किसानों पर जो ये कविता लिखी हैं शायद लिखते वक्त आंखे उनकी भी भर आयी होंगी लिख कर अन्नदाता का दर्द, इस कविता में सुदीप ने अन्नदाता का दर्द बखूबी बयां किया हैं,
ऐसी आंधी चली की घर का तिनका तिनका बिखर गया
आखिर धरती माँ से उसका प्यारा बेटा बिछड़ गया
अखबारो की रद्दी बनकर बिकी कथा बलिदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
इतना सूद चुकाया उसने की अपनी सुध भूल गया
सावन के मौसम में झूला लगा के फाँसी झूल गया।
अमुआ की डाली पर देखो लाश टंगी ईमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की.....
भारत भर में साल 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्याएँ की थी। 2009 ई. में 17368, आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में 1172 की वृद्धि हुई। वहीं 2011 के आंकड़े बताते हैं कि पाँच राज्यों क्रमश: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल 1534 किसान आत्महत्या चुके हैं। वर्ष 2015 में किसानों की आत्महत्या के मामलों की संख्या 3,097 और वर्ष 2014 में 1,163 थी. लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह हैं की कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया, ‘वर्ष 2015 तक आत्महत्या के बारे में ये रिपोर्ट उसके वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. वर्ष 2016 के बाद की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित नहीं की गई है.कितनी शर्म वाली बात हैं हमारे देश में कितने किसान मर रहे हैं इस बात की रिपोर्ट सरकार के पास नहीं है।
किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की
मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की
सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
सच कहा हैं लोगो को काळा धन,भ्रष्टाचार , मंदिर मस्जिद, धर्म, मजहब सबकी चिंता है बड़े बड़े धरना प्रदर्शन भी होते हैं सोशल मीडिया पर हैसटैग भी ट्रेंड होते हैं लेकिन देश में मर रहे किसान अन्नदाता के लिए सब मौन क्यों हो जाते हैं?
जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है
आज उसी की कठिनाइयों का हल क्यों नही निकलता है।
है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
देख कलेजा फट जाता है, आँखों से आंसू बहते
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते कहते
बाली तक गिरवी रक्खी है बेटी के अभिमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
विकास” के शोर के बीच सच्चाई यही है कि हमारे देश में आज भी अन्नदाता आत्महत्या करने के लिए मजबूर है और न सिर्फ़ मजबूर है बल्कि इसमें लगातार बढ़ोतरी भी होती जा रही है। 30 दिसंबर, 2016 को जारी एनसीआरबी की रिपोर्ट “एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015” के मुताबिक साल 2015 में 12 हज़ार 602 किसानों और खेती से जुड़े मज़दूरों ने आत्महत्या की है, जबकि साल 2014 में 12 हज़ार 360 किसानों और खेती से जुड़े मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। आपको बता दे इन 20-25 वर्षों में लाखों किसान खेती भी छोड़ चुके हैं। यानी खेती-किसानी आज घाटे का सौदा बन गई है। इससे साफ है कि हमारा किसान न कायर है और न किसी कमज़ोरी या आवेश में वह खुदकुशी का रास्ता चुनता है, बल्कि दोष हमारी सरकार की नीतियों का है, जो एक किसान और उसके परिवार के लिए बेहतर भविष्य की बजाय सिर्फ़ फांसी का फंदा ही तैयार कर रही हैं, और आप कहते हैं कि किसानों ने खुदकुशी कर ली !”
चीख पड़ी खेतो की माटी तड़प उठी गम से धरती
बिना कफ़न के पगडण्डी से गुजरी जब उसकी अरथी।
और वही विदा हो गया जिसे चिंता थी कन्यादान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।।
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते- सुदीप भोला
देख कलेजा फट जाता है, आँखों से आंसू बहते
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते कहते
कवि सुदीप भोला की किसानो को समर्पित एक मार्मिक कविता जिसने किसनो के दर्द को अपनी कविता से इस तरह बयां किया हैं जिसको पड़ कर लोगो की आंखे नम हो जाये। दोस्तों कहने को तो हमारा भारत कृषि प्रधान देश हैं, और किसान हमारे अन्नदाता लेकिन हकीकत तो ये हैं की हमे जिंदगी देने वाला अन्नदाता आज मर रहा है। ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा। जी हाँ राजनीति की सियासत में गरीब किसान मानो गेहू में घुन की तरह पीस रहे हो, वोट बैंक के लिए राजनीतिक पार्टियां हमारे भोले भाले किसानो से एक से एक बड़े-बड़े लुभावने वादे करते हैं और सरकार बनने के बाद उनकी तरफ कोई नहीं देखता हैं। कोई समझता दर्द उस किसान का जिसके कच्चे घर की छत टपकती है फिर भी वो किसान दुआ करता है बारिश की।
जो देता है खुशहाली जिसके दम से हरियाली
आज वही बर्बाद खड़ा है देखो उसकी बदहाली।
बहुत बुरी हालत है ईश्वर धरती के भगवान् की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
जरा सोचिये हमारे देश में अगर ये किसान नहीं होते तो क्या खाते हम लोग, जिन किसानों पर लाठियां बरसाई जाती हैं क्या उनके बिना हमरा देश कृषि प्रधान देश कहलाता? किसानो की स्थिति आज की दौर में बहुत दयनीय हो गयी हैं, कभी किसान को सूखे की मार झेलनी पड़ती है तो कभी बाढ़ की। ऐसे में बहुत सारे किसान कर्जदार हो कर आत्महत्या कर रहे हैं। एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख रोज मिटने वाला किसान खुद भूखा सो जाता हैं कवि सुदीप भोला ने किसानों पर जो ये कविता लिखी हैं शायद लिखते वक्त आंखे उनकी भी भर आयी होंगी लिख कर अन्नदाता का दर्द, इस कविता में सुदीप ने अन्नदाता का दर्द बखूबी बयां किया हैं,
ऐसी आंधी चली की घर का तिनका तिनका बिखर गया
आखिर धरती माँ से उसका प्यारा बेटा बिछड़ गया
अखबारो की रद्दी बनकर बिकी कथा बलिदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
इतना सूद चुकाया उसने की अपनी सुध भूल गया
सावन के मौसम में झूला लगा के फाँसी झूल गया।
अमुआ की डाली पर देखो लाश टंगी ईमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की.....
भारत भर में साल 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्याएँ की थी। 2009 ई. में 17368, आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में 1172 की वृद्धि हुई। वहीं 2011 के आंकड़े बताते हैं कि पाँच राज्यों क्रमश: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल 1534 किसान आत्महत्या चुके हैं। वर्ष 2015 में किसानों की आत्महत्या के मामलों की संख्या 3,097 और वर्ष 2014 में 1,163 थी. लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह हैं की कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया, ‘वर्ष 2015 तक आत्महत्या के बारे में ये रिपोर्ट उसके वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. वर्ष 2016 के बाद की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित नहीं की गई है.कितनी शर्म वाली बात हैं हमारे देश में कितने किसान मर रहे हैं इस बात की रिपोर्ट सरकार के पास नहीं है।
किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की
मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की
सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
सच कहा हैं लोगो को काळा धन,भ्रष्टाचार , मंदिर मस्जिद, धर्म, मजहब सबकी चिंता है बड़े बड़े धरना प्रदर्शन भी होते हैं सोशल मीडिया पर हैसटैग भी ट्रेंड होते हैं लेकिन देश में मर रहे किसान अन्नदाता के लिए सब मौन क्यों हो जाते हैं?
जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है
आज उसी की कठिनाइयों का हल क्यों नही निकलता है।
है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
देख कलेजा फट जाता है, आँखों से आंसू बहते
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते कहते
बाली तक गिरवी रक्खी है बेटी के अभिमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की...
विकास” के शोर के बीच सच्चाई यही है कि हमारे देश में आज भी अन्नदाता आत्महत्या करने के लिए मजबूर है और न सिर्फ़ मजबूर है बल्कि इसमें लगातार बढ़ोतरी भी होती जा रही है। 30 दिसंबर, 2016 को जारी एनसीआरबी की रिपोर्ट “एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015” के मुताबिक साल 2015 में 12 हज़ार 602 किसानों और खेती से जुड़े मज़दूरों ने आत्महत्या की है, जबकि साल 2014 में 12 हज़ार 360 किसानों और खेती से जुड़े मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। आपको बता दे इन 20-25 वर्षों में लाखों किसान खेती भी छोड़ चुके हैं। यानी खेती-किसानी आज घाटे का सौदा बन गई है। इससे साफ है कि हमारा किसान न कायर है और न किसी कमज़ोरी या आवेश में वह खुदकुशी का रास्ता चुनता है, बल्कि दोष हमारी सरकार की नीतियों का है, जो एक किसान और उसके परिवार के लिए बेहतर भविष्य की बजाय सिर्फ़ फांसी का फंदा ही तैयार कर रही हैं, और आप कहते हैं कि किसानों ने खुदकुशी कर ली !”
चीख पड़ी खेतो की माटी तड़प उठी गम से धरती
बिना कफ़न के पगडण्डी से गुजरी जब उसकी अरथी।
और वही विदा हो गया जिसे चिंता थी कन्यादान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।।
किसानो को समर्पित एक मार्मिक कविता यह सुदीप भोला जी की सर्वश्रेष्ठ कविताओ में से एक कविता है जिसके माध्यम से हमने इस पोस्ट में किसान की जमीनी हकीकत बताने का प्रयास किया है.