विकास पर हास्य कविता
लगाते हैं चलो अपनी कोई दूकान दिल्ली में।
पकौड़े बेचने का हो गया ऐलान दिल्ली में।।
जलाकर डिग्रियां करले कढ़ाई गर्म तू इतनी,
जो खौले तेल तो हो जाएं सब हैरान दिल्ली में।।
तू ग्रेजुएट है तो प्याज काटेगा बहुत बढ़िया,
बहें आँसू तो बहने दे तेरे अरमान दिल्ली में।।
बहुत हैं अनुभवी उन ने बहुत दिन चाय बेची है,
पकौड़े बेच कर तू भी तो बन परधान दिल्ली में।।
जुबानें तो ये रखते हैं मगर ये दिल नहीं रखते,
अलग चोले में दिखता है अलग सामान दिल्ली में।।
पकौड़े बेचने का हो गया ऐलान दिल्ली में।।
जलाकर डिग्रियां करले कढ़ाई गर्म तू इतनी,
जो खौले तेल तो हो जाएं सब हैरान दिल्ली में।।
तू ग्रेजुएट है तो प्याज काटेगा बहुत बढ़िया,
बहें आँसू तो बहने दे तेरे अरमान दिल्ली में।।
बहुत हैं अनुभवी उन ने बहुत दिन चाय बेची है,
पकौड़े बेच कर तू भी तो बन परधान दिल्ली में।।
जुबानें तो ये रखते हैं मगर ये दिल नहीं रखते,
अलग चोले में दिखता है अलग सामान दिल्ली में।।
करके ट्रैक्टर🚜 पर सारे इंतजाम लेजा चार छह लोगो को,
लगाकर जाम तू भी कर मन की बात 📻 दिल्ली में..
लगाकर DJ तू अपने ट्रैक्टर🚜 पर
कर बीच सड़क पर ऐलान तु भी दिल्ली में
दिल्ली तो दिलवालों की थी यहाँ बुस्दिल जा बैठे हैं
किसकी नजर लगी क्या हो रहा अब हाल दिल्ली में।
लगाकर जाम तू भी कर मन की बात 📻 दिल्ली में..
लगाकर DJ तू अपने ट्रैक्टर🚜 पर
कर बीच सड़क पर ऐलान तु भी दिल्ली में
दिल्ली तो दिलवालों की थी यहाँ बुस्दिल जा बैठे हैं
किसकी नजर लगी क्या हो रहा अब हाल दिल्ली में।
जगाकर देशभक्ति जनता और राजनीतिक भक्तों में
बांटता रहे रेवड़ी यारों और मिलनेवालो को दिल्ली में।
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